कैसा इश्क़ है

कई बार जीती हूँ
कई बार मरती हूँ

कैसा इश्क़ है तेरा
बिगड़ती हूँ स्वरती हूँ

होश नही रहता कभी
बेखुदी में जीती हूँ

यूँ लगे नशे में हूँ
ऐसे क्यों बहकती हूँ

कोई होश नही अभी
मरती हूँ की जीती हूँ

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