काहे बिसरा दी
काहे बिसरा दी सुध बुध प्यारे
प्यासी अखियां बाट निहारें
साँझ ढली पिया जी न आये
भई बैरागण कुछ न भाये
आजा कान्हा आजा कान्हा
रोती अखियां तुझे पुकारें
काहे बिसरा दी......
पिया बिन कहीँ मन नही लागे
अखियां सारी सारी रैना जागें
घायल मन मेरा तुझे पुकारे
आजा प्यारे बस पास हमारे
काहे बिसरा दी.....
सुना मेरे मन का आँगन
हाय नही आये मेरो साजन
हार सिंगार न भाये कुछ भी
तुझको पुकारूं बांह पसारे
काहे बिसरा दी.....
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