प्यारे तेरी मोहबत
कैसे करूँ बयाँ मैं कितनी तेरी इनायतें
मिटती ही जा रहीं हैं तुझसे जो थी शिकायतें
बेसबब दे रहे हो तेरी कितनी मेहरबानियां
भूलते ही जा रहे हो गुस्ताख की नादानियां
कैसे नज़र मिलाऊँ की गुनहगार हूँ मैं
नज़र ए करम का तेरे फिर भी तलबगार हूँ मैं
ना थी मैं काबिल प्यारे तूने इतना है नवाज़ा
तेरी इनायतों का नही मुझे हुआ अंदाज़ा
तेरे रंग में रंग जाऊँ तेरा होने में मज़ा है
तेरे बिना जीना कैसा प्यारे जन्नत में भी सज़ा है
इतना भी ना मुझको आये कैसे हो तेरा सज़दा
तेरा ही रहमते करम है जो भी है तेरा बख्शा
मेरे दिल को ये यक़ीन है पल पल का साथ तेरा
मुश्किल घड़ी में प्यारे भी न छूटे हाथ तेरा
बस यूँ ही मेरे रहना नही कोई बाक़ी हसरत
क्या क्या सिखा रही है प्यारे तेरी मोहबत्
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