अपनों से पर्दे

मुझसे कहाँ होगा तेरे सा इश्क़
जो तू करता है लाजवाब होता है

मुझको आरज़ू है दीदार ए यार की
मेरा यार मेरे लिए आफताब होता है

क्यों पढ़ नही पाती ये नज़र तेरा चेहरा
यूँ तो सबके लिए तू खुली किताब होता है

कब दीदार होगा तेरा इन प्यासी आँखों को
अपनों से पर्दे हैं तेरे गैरों से बेनकाब होता है

क्यों तेरे आने पे इतने सवाल होते हैँ
तू तो मेरे हर सवाल का जवाब होता है

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