जल रही है रूह मेरी
जल रही है रूह मेरी
बादल बन बरस जाओ
तड़प सुलगा रही मुझको
ना तड़पाओ अब आ जाओ
क्यों इतना तड़पाते हो तुम
ऐसे तो तुम ना थे कभी
नाम पुकारे आ जाते थे
याद तेरी आती थी कभी
अश्क़ मेरे अब खत्म हो रहे
हाय मैं क्यों अब तक जिन्दा हूँ
लाखों गुनाह किये हैँ मैंने
अपने किये पे शर्मिंदा हूँ
अब तो आओ क्यों है दूरी
ऐसी भी है क्या मज़बूरी
प्यासी ऑंखें तलाश रहीं हैँ
कुछ तो प्यास बुझा दो मेरी
Comments
Post a Comment