जीना हुआ बेकार सा
ये इश्क़ क्यों है तलवार सा
काटता है क्यों दो धार सा
बीता जा रहा हर लम्हा
कर देता है बेकरार सा
पल पल मर रही हूँ मैं
जीना हुआ है दुश्वार सा
ऑंखें लगी हैं राहों में यूँ
हो जाए तेरा दीदार सा
हाय अब आये तू अब आये
बीत रहा हर लम्हा बेकार सा
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