क्या कहना नज़र ए कर्म का

क्या कहना नज़र ए करम का
तूने कैसी नज़र कर दी
मुझे मुझ से ही चुरा के
कैसी बेखुदी सी कर दी
क्या कहना.......

कैसे अब मैं जी रही हूँ
तेरे प्यार में बेखबर सी
दुनिया की कुछ खबर ना
दुनिया बेमानी कर दी
क्या कहना......

कैसा इश्क़ तेरा प्यारे
कैसा रस बरस रहा है
मुझको पिला के तूने
खुद से बेगानी कर दी
क्या कहना.....

अब हाल है ये मेरा
भूले ना नाम तेरा
इक पल भी तुझको भूलूँ
मेरी जान है निकलती
क्या कहना......

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