मेरे मन में
मेरे मन में आन बसो अब मेरे गोपाल
बीत रही है मेरी उमरिया आये नही नन्दलाल
पतित अधम हूँ जप है न तप कोई
साधना ना भक्ति ज्ञान भी नही कोई
मन उलझा मेरा जगत में फसा हुआ जंजाल
बीत रही है........
मेरा बल नही तेरी करूँ पूजा
तेरे बिन पर मेरा कोई ना दूजा
अब तो आओ मेरे कान्हा हल करो मेरे सवाल
बीत रही है.......
तेरे सिवा कोई चाह रहे ना मन में
मुझको तपा दो ऐसे प्रेम अगन में
तुम चाहो तो सांवरे भव से देयो निकाल
बीत रही है......
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