मैं तो दीन हीन नाथ
मैं तो दीन हीन नाथ
तुम निज जन को सनाथ करो
पतित पावन है नाम तिहारो
पतितों पर उपकार करो
अधम कुटिल कामी और कपटी
जैसे भी अब तेरा ही
तुम ही कृपा ना करो सांवरे
जीवन रहे अँधेरा ही
नही अभिलाषा सुख और धन की
चरण रज ही मिल जाए
जन्मों से तरस रही क्षुधा को
किंचित तृप्ति मिल जाए
हरि चरणन ते दूर करो न
शरण में आए अधर्मी पामर
एक बूँद मिल जाए प्रेम की
तुम हो प्यारे दया के सागर
भटक रही थी जन्मों जन्मों
अब तेरे चरण ठिकाना मेरा
यहीँ मिलेगी कृपा तेरी प्यारे
सांवल प्रेम निभाना मेरा
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