और कितनी देरी

क्या गुज़रे हो तुम यहीँ से अभी
लगती है हवाओं में महक तेरी

दिखते नहीँ हो आँखों से तुम
क्यों महसूस करती है रूह मेरी

क्यों एहसास तेरा हर फूल में
पत्ता पत्ता करता है बात तेरी

क्यों मुझसे छिप छिप रहते हो
करते हो नज़रों से हेरा फेरी

हाय रूह अब जिस्म छोड़ चली
अब लगाओगे और कितनी देरी

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