हरि नाम को चाव
हरि नाम को चाव ना रह्यो मेरो उर समाय
हरि रस ना कबहुँ चाख्यो विषयन रह्यो निभाय
कुटिल पातकी शूकर जगत विष्ठा रह्यो खाय
हरि चरणन विमुख रह्यो हरि जस ना गाय
विषयन सों मन रम रह्यो एहो मेरो सुभाय
कौन मुख से हरि तोसे कहूँ नैनन मिल्यो आय
नैनन कर सों ढांप लूँ रहूँ पापन सों शरमाय
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