26
जय जय श्यामाश्याम
वंशिका 26
श्यामसुन्दर आज बहुत प्रसन्न हैँ , श्यामा जू की रूप छटा उन्हें उन्मादिनी बना रही है। आज प्रियतम प्यारी के श्रृंगार की हर वस्तु हो जाना चाहते हैँ। हर रूप में बस प्यारी जू में रमा जाने को लालायित हो रहे। सखियों से सेवा मांग रहे हैँ। सच भी तो है श्यामा के रोम रोम श्यामसुन्दर ही तो हैँ। भीतर बाहर सब श्यामसुन्दर ही हैँ।
श्यामसुन्दर श्यामा जू की सतरंगी चुनर हो गए हैँ जिसे श्यामा जू की सखियाँ उन्हें ओढ़ा रही हैँ। उनकी मेहँदी में वही रच बस रहे हैँ। कंगन की खन खन ही कृष्ण कृष्ण है। नुपुर के घुंघरू भी प्रियतम का नाम सुना प्यारी के हृदय में प्रेम तरंगें भर रहे हैँ। आहा ! श्यामसुन्दर प्यारी जू का श्रृंगार हो चुके हैँ। तभी उनकी बांसुरी प्रेम नाद छेड़ देती है।
पाई हो जी पाई हो पाई हो मैं श्याम पिया
बाजी हो जी बाजी हो बाजी मोहन की बाँसुरिया
मेहँदी सजाई
चुनर ओढाई
साजी हो जी साजी हो श्याम पिया की दुल्हनिया
पाई हो जी पाई हो पाई हो मैं श्याम पिया
बाजी हो जी बाजी हो बाजी मोहन की बाँसुरिया
चूड़ी पहनाई
पायल खनकाई
नाची हो जी नाची हो बनके मैं पिय की बांवरिया
पाई हो जी पाई हो पाई हो मैं श्याम पिया
बाजी हो जी बाजी हो बाजी मोहन की बाँसुरिया
नाम तिहारा
लागे मोहे प्यारा
गाई हो जी गाई हो मोहन मैं तेरी गुजरिया
पाई हो जी पाई हो पाई हो मैं श्याम पिया
बाजी हो जी बाजी हो बाजी मोहन की बाँसुरिया
तुमको रिझाऊँ
पिया तुमको मनाऊँ
रूठे न कभी रूठे न श्याम पिया मेरे सांवरिया
पाई हो जी पाई हो पाई हो मैं श्याम पिया
बाजी हो जी बाजी हो बाजी मोहन की बाँसुरिया
श्यामा जू का अद्भुत श्रृंगार प्रियतम के हृदय को कैसे सहज रखेगा। क्षण क्षण रसिक शेखर इस रूप सुधा पीने को लालायित हो रहे। उनके हृदय में प्रेम रस की तृषा को बढ़ाती हुई ये मन्द मन्द बहती हुई सुवासित पवन। किस प्रकार हृदय इस प्रेम सुधा के पान को न मचले। प्रियतम स्वयम् ही श्रृंगार हो गए हैँ और स्वयम् ही रसिक राज रस आतुर हुए जा रहे हैँ। वंशी के प्रेम नाद से युगल हृदय प्रेम रस में डूबने लगते हैँ। कब श्यामसुन्दर के नैन प्यारी जू के नैनों में उलझ गए। हाय ! दोनों ही सम्भलने की स्थिति से बाहर हुए जा रहे हैँ और वंशी के प्रेम नाद छेड़ने पर हृदय में उथलपुथल मच रही है। सब कुछ जैसे थमने को है कुछ शेष है तो बस तुम सिर्फ तुम और ये तृषा बढ़ती ही जा रही ........
क्रमशः
Comments
Post a Comment