4

जय जय श्यामाश्याम

विरहणी तितली 4

ब्रजमण्डल में भोर अपना अलौकिक सौंदर्य बिखेरते हुए प्रकट हुई है, परन्तु आज पूर्व दिशा की लालिमा विरह अग्नि की लपटों के समान प्रतीत हो रही है। मन्द मन्द चल रही बयार आज मिल्न की अनुभूति न देकर सभी ब्रजवासियों के अश्रुओं को सुखाने हेतु ही बह रही है। श्री प्रिया ने तो श्री कृष्ण को लीला क्रम बढ़ाने की अनुमति दे दी है परंतु समस्त ब्रजवासियों की दशा देख ये तितली अश्रु सागर में डूबती जा रही है। समस्त ब्रज में घूम घूम देख रही है परंतु हर हृदय की वेदना संग लेकर एक ओर से दूसरी ओर उड़े जा रही है। अपनी इस उड़ान को विराम भी दे तो कैसे। समस्त ब्रजवासी तो पीड़ा में रुदन कर रहे हैं। आज न किसी माँ को उसकी अतृप्त सन्तान को तृप्त करने की लालसा हो रही , न किसी घर में कोई चूल्हा जल रहा , न कोई गाय का दूध दोहन कर रहा , बछड़े भी जैसे दूध पीना भूल गए हैं, कोई किसी को कहे भी तो क्या ? समस्त ब्रजवासी प्राणहीन ही तो हैं अपने श्यामसुंदर के बिना।

    नन्दभवन में कुछ हलचल सी दिख रही है इस तितली को। उड़ती हुई तितली नन्दभवन के आंगन में पहुंच गयी है तो क्या देखती है, श्री कृष्ण सुंदर वस्त्र धारण किये हुए मयूर पिच्छ मुकुट में सजाए आनन्दित हो रहे हैं , मथुरा जाने के लिए कितने लालयित हो रहे। तितली तो उनकी बाल सुलभ चंचलता और सुंदर श्रृंगार देख ही मोहित हो रही है। अग्रज बलराम भी आज अद्भुत श्रृंगार किये हुए हैं। दोनों बालकों की हंसी से नन्दभवन गूंज रहा है। वत्सल्यमूर्ति यशोदा मैया निरन्तर अश्रु प्रवाह कर रही है, न तो दूध दोहन की कोई परवाह , न ही माखन बिलोया गया। हो भी कैसे उसके हृदय की स्थिति तो कोई देखे। श्री कृष्ण अत्यंत उत्साहित हो आकर मैया के नेत्रों से अश्रु पोंछते हैं। मैया ! अभी तक माखन न निकाला तुमने , क्या माखन मिश्री खाने मुझे अन्य किसी घर जाना होगा? तू कहेगी तो मै अभी प्रभा मौसी के यहां जाता हूँ। यशोदा कान्हा की बात सुनती है और उसका मुख निहारती है। कन्हाई माँ को आलिंगित करते हैं और मैया वात्सल्य रस में सराबोर हो जाती है। कन्हाई के मथुरा गमन को विस्मृत कर देती है और शीघ्रता से माखन निकाल अपने पुत्र पर अपना वात्सल्य लुटाते हुए माखन खिलाने लगती है। माँ को एक क्षण भी कान्हा के जाने का विचार होता है तो तुरंत कान्हा उसका ध्यान बंटा देते हैं, आज जैसे माँ को आनन्दित करने में ही लगे हैं। इस प्रकार माँ पुत्र प्रेम विभोर हुए जा रहे हैं।

    कुछ क्षण बाद नन्द बाबा आवाज़ देते हैं कि दोनों बालक शीघ्रता से बाहर आ जाएं , रथ द्वार पर तैयार है । अक्रूर जी भी दोनों बालकों की प्रतीक्षा में रथ के पास खड़े हैं। यशोदा मैया किसी भी प्रकार अपनी वेदना को छिपाने में असमर्थ हुई जा रही है। द्वार तक तो कैसे आएं एक कदम बढ़ाने का साहस भी नहीं कर रही। श्री हरि की लीला शक्ति मैया को मूर्छा में ले जाती है अन्यथा ये वात्सल्य मूर्ति कहीं प्राण ही न त्याग कर दे। तितली यशोदा मैया की दशा देखते हुए अश्रु प्रवाहित करती है और कृष्ण बलराम को एक दृष्टि निहारने द्वार की ओर बढ़ जाती है जहां सब उनकी प्रतीक्षा में खड़े हैं।
 
     नन्दबाबा पहले तो शांत ही थे, जैसे कैसे हृदय के भाव छिपा रहे थे परंतु जैसे ही दोनों भ्राता उनके चरण छूकर उनकी ओर मुख करते हैं, अपने दोनों बालकों को हृदय से लगा लेते हैं। अश्रु प्रवाह को किसी प्रकार भीतर दबा लेते हैं और बालकों को रथ में बिठाते हैं। जैसे ही रथ नन्दभवन के आगे से चलने लगता है नन्द बाबा का हृदय अपनी वेदना को छिपाने में असमर्थ हो जाता है और ये तितली उन्हें अश्रु पात करते हुए गिरते देखती है। रथ धीरे धीरे मार्ग की ओर अग्रसर हो रहा है और तितली कृष्ण बलराम को निहारते हुए संग संग उड़ती जा रही है।

  क्रमशः

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून