वंशिका 3@

जय जय श्यामाश्याम

वंशिका 3

श्यामसुन्दर आज अपनी बांसुरी भूल गए हैं। उनके जाते ही श्यामा ने उस बंसी को अपने हाथों में उठा लिया है। श्यामा जू तो जैसे उन्मादिनी सी हो रही हैँ। बंसी के भी तो भाग जाग गए हैँ नित्य ही तो प्रियतम के करों का स्पर्श प्राप्त करती है। प्रियतम की चिर संगिनी है रात हो या दिन प्रियतम श्यामसुन्दर इसके बिना रह नहीं पाते। उस समय बंसी में मानो अमृत का संचार होता है जब श्यामसुन्दर उसे अधरों से लगा उसमें राधा राधा ....नाम सुनाते हैँ। उस समय ये वंशी राधा नाम से समस्त चर अचर में मानो प्राणों का संचार ही करती है। प्रियतम के स्पर्श और राधा नाम बिन इस बंसी का कोई मूल्य नहीं है। आज तो बंसी श्यामा जू के करों में है। बंसी भी स्वामिनी जू के उन्माद से उन्मादिनी ही हो रही है। बंसी में राधा नाम की लहरें उठने लगती हैँ मानो राधा नाम सुनाये बिन इसके प्राण ही निकल रहे हों।

    श्यामा जू बंसी को लेकर कभी चूमती है कभी अपने हृदय से लगाती है कभी खो जाती है कभी बातें करने लगती है। बंसी को कहती हैँ तू बहुत सौभाग्यशाली है री हर समय प्रियतम के संग रहती है। जाने ऐसी क्या बात है वो तुझे छोड़ते ही न हैँ। तेरे वियोग से व्याकुल हो जाते हैँ। अभी तू मेरे पास है तो मुझे मेरे प्राणों से भी प्रिय है तू तो मेरे प्रियतम की अमानत है। चल बंसी अब तू मुझे कृष्ण नाम सुना। मुझे मेरे प्रियतम के नाम से अधिक सुखकर क्या होगा। श्यामा जू बंसी को होठों से लगा लेती है।

     बंसी तो प्रियतम के अधरों का अमृतपान नित्य प्रति करती है आज तो श्यामा जू ने भी अधरों पर धर लिया है। बंसी में तो जैसे प्राण ही नहीं रहे। मौन ही हो गयी निष्प्राण सी जड़ ही हो गयी है। जो राधा नाम उसमे नित्य नित्य प्राणों का संचार करता है हाय आज राधा ही अपने अधरों से लगा ली हैँ। बंसी तो अब हर तरह से असमर्थ हो रही है। परन्तु इस जड़ता का त्याग भी तो करना होगा। स्वामिनी जू की इच्छा है कृष्ण नाम सुनाना होगा।

     पुनः श्यामा जू बंसी को अधरों से स्पर्श करती हैँ । परन्तु ये क्या बंसी कृष्ण कृष्ण नाम न लेकर राधा राधा ही बोलने लगती है। बंसी तू मुझे कृष्ण नाम सुना मुझे मेरे प्रियतम का नाम सुना दे एक बार। बंसी कहती है स्वामिनी जू आपकी परसन्ता के लिए कृष्ण नाम लेना चाहती हूँ पर जैसे ही कृष्ण की ध्वनि निकालने लगती हूँ भीतर से राधा हो जाता है। जानती हूँ आप कृष्ण नाम सुनने को व्याकुल हो रही हो मैं भी कृष्ण नाम ही लेती हूँ स्वामिनी जू वो राधा राधा ही हो रहा है। स्वामिनी जू आज कान्हा का हृदय अधीर हो रहा होगा। आपके प्राणवल्लभ आपके वियोग में नित्य राधा राधा ही पुकारते हैं। आज मुझे तो इधर भूल गए हैँ परन्तु बंसी में जैसे उनका हृदय ही आकर बैठ गया है। ये बंसी राधा नाम के सिवा कुछ बोल ही नहीं पा रही। प्यारे जू के हृदय में आपका नाम ऐसे बसा है कि प्रति क्षण राधा राधा राधा ..बस आप ही उनके जीवन प्राण हो। ये बंसी आज उन्हीं का हृदय धारण की हुई है।

     अच्छा बांसुरी यदि मेरे प्रियतम को राधा नाम ही इतना प्रिय है तो तुम मुझे राधा नाम ही सुनाओ। मेरे प्रियतम को सुख हो मुझे अपना सुख भी नहीं लेना है। यदि कृष्ण नाम से केवल मुझे सुख होगा और राधा नाम से मेरे प्रियतमतम के हृदय को सुख हो तो तुम मुझे राधा नाम ही सुनाओ। अब बांसुरी अपनी पहली सी दशा अनुसार राधा राधा ......नाम पुकारने लगती है। हर और प्राणों का संचार हो रहा है । राधा नाम से प्रिय और क्या है। राधा नाम से मधुर और क्या है। बांसुरी के सुर राधा राधा पुकार रहे हैँ और श्यामा जू प्रियतम के आनन्द से भर रही हैँ। इस अद्भुत प्रेम की दशा का शब्दों में क्या वर्णन हो पायेगा।

श्यामा कहे बंसी मोहे कृष्ण नाम दीजौ सुनाये ।
बंसी कहे श्यामा जू मोहन को राधा नाम ही भाये ।।

श्यामा कहे बंसी कृष्ण नाम ही मेरो धन प्राण ।
बंसी कहे प्यारी जू राधा नाम प्राण अमृत समान ।।

श्यामा कहे बंसी तू बडभागिनी नित्य प्रियतम अधर लगाये ।
बंसी कहे मैं बड़भागिनी जो राधा नाम नित्य गाये ।।

श्यामा कहे बंसी प्रियतम नाम ही मेरो सुख ।
बंसी कहे प्रियतम कबहुँ होये ना राधा विमुख ।।

श्यामा कहे बंसी वही कहियो जो प्रियतम मन भाये ।
बंसी कहे श्यामा जू प्रियतम नित्य ही राधा गाये ।।

श्यामा कहे बंसी कृष्णनाम में प्रेम अपार ।
बंसी कहे राधा नाम करे अखिल ब्रह्मण्ड में प्राण संचार ।।

श्यामा कहे बंसी प्रियतम सुख ही मेरो सुख होय ।
बंसी कहे प्यारी जू ये बंसी प्रियतम का हृदय होय ।।

श्यामा कहे बंसी तू राधा नाम ही उच्चार ।
प्रियतम के सुख होय ते सुख मिले मोहे अपार ।।

  श्यामा जू बंसी में राधा राधा नाम ही सुन रही है। जिस प्रकार प्रियतम प्यारे को राधा नाम से सुख होता है वही सुख आज श्यामा जू को राधा नाम से हुआ। उनके नैनों से निरन्तर प्रेमाश्रु बह रहे हैँ । प्रियतम का सुख ही तो राधा का सुख है। 

क्रमशः

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