23
श्यामाश्याम
वंशिका 23
श्री प्रिया बहुत आनन्द में हैँ ,पुनः पुनः अपने प्रियतम की मधुर स्मृति उनको आनन्द दे रही है। तभी वहां ललिता जू आती हैँ उनके हाथ में दो चित्र हैँ। एक चित्र में श्यामसुन्दर पतंग उड़ा रहे और प्यारी जू उन्हें निहार रही है। दूसरे चित्र में श्यामसुन्दर और प्यारी जू मिलकर पतंग उड़ा रहे हैँ। श्री प्रिया इन दोनों चित्रों को देख अति आनन्दित होती है। सखी के हृदय की अभिलाषा अपनी प्यारी जू के सुख हेतु ही जाग्रत हुई। प्यारी जू के हृदय में भी पतंग उड़ाने की लालसा जागृत हो गयी। आज श्यामसुन्दर से कहूँगी मुझे पतंग उड़ाना सिखा दो। सखियों से पतंग और डोरी मंगवाकर रख लेती है। पुनः पुनः उन्हीं चित्रों को निहारती है।
श्यामसुन्दर तभी वहां आ जाते हैँ उनके हाथों में वंशिका देख ललिता जू मुस्कुराने लगती है। ललिता जू उनके हाथ से बांसुरी पकड़ लेती है और उन्हें पतंग और डोरी पकड़ा देती है। आज प्यारी जू की इच्छा पतंग उड़ाने की है श्यामसुन्दर। बलिहार ! प्यारी जू की कोई इच्छा हो और श्यामसुन्दर पूरी न करें । श्यामसुन्दर पतंग को डोरी के साथ बांध उड़ाने की तयारी करते हैँ। श्री प्रिया के अधरों पर मृदु मुस्कान आने लगती है।
इधर ललिता जू के हाथों में पड़ी बांसुरी उन्मादित हो रही है। ललिता जू बांसुरी बजाने लगती है और मधुर राग रागिनी छेड़ देती है। प्यारी जू जो श्यामसुन्दर को निहार रही थी बांसुरी की धुन में खोने लगती है। एक बार तो ललिता जू को ही श्यामसुन्दर समझ उनका आलिंगन कर लेती है। आहा! खो गयी प्यारी जू प्रियतम के आनन्द में ही। तभी श्यामसुन्दर उन्हें पुकारते हैँ और ललिता जू हंसने लगती है। श्री प्रिया चेतन होकर कुछ लजाने लगती है कि वह तो ललिता सखी को ही श्यामसुन्दर मान ली। तब श्री प्रिया श्यामसुन्दर के पास पतंग उड़ाने जाती हैं।
श्यामसुन्दर के दोनों हाथों में पतंग की डोर है वो प्यारी जू के गले में दोनों बाहें डाल देते हैँ और प्यारी जू के हाथ में डोरी देते हैँ। जैसे ही श्यामसुन्दर के हाथ प्यारी जू के हाथों से स्पर्श करते हैँ हाय ! भीतर तक सिहरन अनुभव होती है। प्यारी जू तो प्रेमरस से जड़ होने लगती है।
तू पतंग मैं तेरी डोर प्रियतम
तुम चाँद बनो मैं चकोर प्रियतम
जोड़ी अपनी बन्धी रहे प्रेम डोर से
एक तुम तो दूजा छोर मैं प्रियतम
रहें आनन्द मगन सदा प्रेममई
सदा रस में रहें विभोर प्रियतम
कभी वियोग की कारी रात्रि न रहे
सदा प्रेमभरी नित्य भोर प्रियतम
तुम पतंग मैं तेरी डोर प्रियतम
तुम चाँद बनो मैं चकोर प्रियतम
तभी ललिता जू कहती है प्यारी जू पतंग को देखो श्यामसुन्दर से न सीख़ पाओगी तुम। आओ मुझे ही तुमको सिखाना पड़ेगा। सभी सखियाँ मन्द मन्द हंसने लगती हैँ और प्रियाप्रियतम पतंग उड़ाने लगते हैँ परन्तु दोनों के हृदय तो प्रेम व्याकुल हो रहे हैं। सभी सखियाँ उनके हृदय की व्याकुलता समझने लगती हैँ और उनके सुख साधन की लालसा करती हैँ। बांसुरी भी पुनः पुनः प्रेम रागिनी छेड़ने लगती है।
क्रमशः
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