वंशिका 27

जय जय श्यामाश्याम

वंशिका 27

   श्री युगल की अनेक लीलाओं का गायन किया इस वंशिका ने। राधा नाम गायन ही इस वंशिका का जीवन है। श्री चरणों की रज ही वास्तविक जीवन की अमूल्य निधि है जिनकी सेवा को स्वयम् श्यामसुन्दर भी लालायित रहते हैँ।

बना लो मुझे अपनी बाँसुरिया
हो दिन रैन साथ तेरे
मेरे जीवन की डोर अब कन्हैया
है अब हाथ तेरे

तेरे ही सहारे अब मेरा जीवन
तेरा नाम भूलूँ ना कभी कन्हाई
जैसे चाहो रखलो इच्छा तुम्हारी
तू ही तो चाहे मेरी  ही भलाई
सब कुछ छोड़ दिया अब हाथ तेरे
बना लो.......

मुझको शरण में रखो गिरधारी
कोई सेवा दीजो ऐसी मेरी भावना
रहे ना आसक्ति झूठे जगत की
मन में रहे ना कोई विषय कामना
हर पल सिमरण हो अब नाथ मेरे
बना लो.......

कोई नही साधन जिससे रिझाऊं
नहीँ मेरी वाणी कुछ भाव सुनाऊँ
बिन बोले ही सब मन की जानते
क्या मैं मुख से बोल सुनाऊँ
तेरी ही सेवा में जुड़ें हाथ मेरे
बना लो.........

  सदा श्यामाश्याम का नाम गायन ही जीवन हो । युगल चरणों में समर्पित रहे ये जीवन।

एक दासी थी सबसे क्यों अलग,मैं देखता ही रह गया !प्रियतम🌿

निर्झर अश्रु में डूबी हुई, थी प्रेम की माला गुथी!प्रियतम🌿

मन में बैठा चित्तचोर बसा,वो तुम्हीं थे मेरे!प्रियतम🌿

वंशिका मन पल पल पुकार उठे,"मेरा युगल सुखी हो सदा"!प्रियतम🌿

दासी की बात सुनाऊँ क्या,है प्यार बड़ा मधुरम!प्रियतम🌿

दी प्यार में सार कुछ ही ऐसा,
प्रेम में त्याग दिखा !प्रियतम🌿

त्याग हुआ कुछ ऐसा भी ,देख लगा असम्भव !प्रियतम🌿

वो(वंशिका)बोल उठी सुंदर सा वचन,"मिलन युगल का"मधुर!प्रियतम🌿

सुना प्रेम अश्रु देता,विरह की अग्नि बड़ी !प्रियतम🌿

दासी की आँसू बनी अमृत,थे युगल बसे उसमे !प्रियतम🌿

जो पान किया रसखान बना,रस की खान तुम्हीं !प्रियतम🌿

वंशिका ने सुनाया स्वर सुंदर"युगल मिलन हो सदा"प्रियतम🌿

     ( संत कृपा )

  वंशिका भाव लेखन विश्राम

    जय जय श्यामाश्याम

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