वंशिका@15
जय जय श्यामाश्याम
वंशिका 15
श्यामा अपने नैन खोलती है और श्यामसुन्दर को संग न पाकर अधीर हो जाती है। श्यामसुन्दर की बांसुरी श्यामा जू की ओढ़नी के नीचे पड़ी है। श्यामा उसे हाथों में उठा निहारने लगती है । श्यामा जू के नैनों से निरन्तर अश्रु प्रवाहित हो रहे हैँ,आज ये बांसुरी श्यामा जू को अति विरहित देख रुदन करने लगती है। परन्तु श्यामा जू के सामने तो ये रुदन भी न करेगी नहीं तो श्यामा जू को सम्भालना कठिन हो जायेगा। बांसुरी कहने लगती है राधे राधे राधे राधे ...........| परन्तु ये क्या श्यामा जू का विरह तो और बढ़ने लगा। बांसुरी के इस प्रकार बोलने से श्री श्यामा जोर जोर से रोने लगती है। उनको श्यामसुन्दर का विरह असह हो रहा है। वंशिका सोच रही है किस प्रकार स्वामिनी जू का ध्यान बंटाऊँ। इनको इस प्रकार विरहित भी तो नहीं देखा जाता।
सूनी लागे पिया बिन सेजरिया हार सिंगार मेरो सखी रोवे
बाजे ना पैरन में पायलिया और कंगना ना हाथन माँहिं सोहवे
सूनी सी बिंदिया भाल जरी मेरो नैनन माँहिं कजरा ना सुहावे
बिरहनी रैन दिवस अकुलावे हार सिंगार ना हिय को भावे
का पहनूँ का ओढूँ री चुनरिया छूवत मेरो अंग जरावे
सतरँगी चुनरिया पिया मोहे दीन्हीं देखत याद पिया की आवे
कौन घड़ी आन मिलो प्रियतम बाँवरी तेरो आस लगावे
अँग लागे तेरो चैन परे मोहे राह तकत हूँ कबहुँ पिया आवे
श्यामा जू उठकर द्वार के पास आ जाती है और उनकी दृष्टि आकाश की ओर जाती है। श्यामल मेघ आज श्यामा जू की विरह वेदना को और बढ़ा रहे हैँ।श्यामा मूर्छित होकर गिरने लगती है तभी ललिता जू आकर उन्हें सम्भाल लेती है। पता नहीं श्यामसुन्दर कहाँ चले गए ललिता , अभी कुछ क्षण पूर्व ही तो मेरे संग थे। मुझे छोड़कर कहाँ चले गए मेरे श्यामसुन्दर। क्या तुमने देखा है उनको। हाँ हाँ श्यामा वो आ रहे हैँ मुझे अभी मार्ग में मिले वो तुम्हारे श्रृंगार के लिए पुष्प लेने गए हैँ। आज वो तुम्हारा पुष्प श्रृंगार अपने हाथों से करेंगें। ललिता जू इस प्रकार श्यामा जू को आश्वासन देने लगती है। श्यामा जू बांसुरी को संकेत करती है कि युगल मिल्न का कोई राग छेड़ दे जिससे श्यामा का विरह भाव संवरित हो सके।
सखी अजहुँ पिया मोरे मेरो सिंगार कीन्हीं
हथ चूड़ी भाल बिंदी पावँ पायलिया दीन्हीं
अधरन दीन्हीं रंगत मेरो अपनी प्रेम वारी
घागरा चोली प्रियतम अपनो प्रेम ते रंग डारी
सात रँग की चुनर डार प्रियतम मेरो करे सिंगार
देख देख मोहे प्रियतम प्यारे लेत सखी बलिहार
मैं अपने प्रियतम प्यारे की प्रियतम मेरो प्यारे
अंक भरत कबहुँ हाथ पकर मेरो प्रियतम मोहे निहारें
सतरँगी चुनर डार सखी घूंघट लियो निकार
पिया मेरो घूँघट हटावें रह्यो मेरी ओर निहार
कंप कंम्पाति देह रह्यो मेरी पिया मेरो कर पकरयो
अपने दोउन भुजा पाश माँहिं पिया मोहे ऐसो जकरयो
पिया पिया ही मुख ते निकल्यो पिया में रहूँ समाहिं
राख्यो मोहे ऐसो ही पिया कबहुँ छोड़त नाँहिं
मैं अपने प्रियतम प्यारे की प्रियतम मेरो प्यारे
अंक भरत कबहुँ हाथ पकर मेरो प्रियतम मोहे निहारें
प्रियतम बोलें सुन सजनी सुन मेरो हिय की बतियाँ
तेरे बिन सूनी सब सजनी काटे कटें ना रतियाँ
अधरन सों अधरन छुवत् सखी लाज मोहे अति आवे
कैसों निहारूँ पिया तेरो मुख लाज घेर मोहे जावे
चिबुक पकर मोहे पिया कहें हाय सजनी मोहे निहारो
नैन भरयो मैं काजल अजहुँ प्रियतम प्रीती वारो
मैं अपने प्रियतम प्यारे की प्रियतम मेरो प्यारे
अंक भरत कबहुँ हाथ पकर मेरो प्रियतम मोहे निहारें
ललिता जू कहती है देखो श्यामा आज ये बांसुरी क्या गा रही है। प्रियतम तुम्हारा श्रृंगार करेंगें । अब अश्रु बहाना त्याग दो प्यारी जू। इस प्रकार श्यामा धीरे धीरे विरह त्याग प्रियतम की मधुर स्मृतियों में खोने लगती है। तभी श्यामसुन्दर भीतर परवेश करने लगते हैं तो ललिता जू उन्हें विलम्ब का कारण पूछती है। श्यामसुन्दर कहते हैँ कल नृत्य के समय मेरी बांसुरी खो गयी थी वही देखने गया था अभी तक न मिली। ललिता हंसने लगती है और कहती है वो देखो तुम्हारी बांसुरी तो प्यारी जू को मिल्न गीत सुना रही है। ललिता जू श्यामसुन्दर को पुष्पों से भरी एक डलिया देती है और कहती है इन पुष्पों से आज आप श्यामाक श्रृंगार करो। शेष वस्त्र आभूषण हम ले आएँगी। यही कहकर श्यामा जू को धैर्य धराया है। श्यामा जू श्यामसुन्दर को पुष्पों संग देख अति प्रसन्न होती है और जाकर उनसे आलिंगित हो जाती है। श्यामसुन्दर पुष्पों से भरी हुई सारी डलिया प्यारी जू पर उड़ेल देते हैँ। दोनों व्याकुल दृष्टि से एक दूसरे को निहारने लगते हैँ और बांसुरी पुष्पों में छिप जाती है।
क्रमशः
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