वंशिका @14
जय जय श्यामाश्याम
वंशिका 14
श्यामा जू के बांसुरी बजाने पर सभी सखियाँ अपने वाद्य ले आती हैँ। श्यामसुन्दर मयूर युगल का नृत्य देख देख आनन्दित हो रहे और उनके संग नाचने लगे। श्यामा जू उनके नृत्य की भाव भंगिमाएँ देख देख रीझ रही है और मयूरी बन उनके साथ नाचने लगती है। श्यामा जू ने बंसी को हाथ में पकड़ रखा है और उसे हवा में हिला हिला कर नाच रही है। आज वंशिका के आनन्द की सीमा न रही जो श्यामा के हाथों में नाच रही है। तभी श्यामसुन्दर नाचते नाचते श्यामा जू के हाथ पकड़ लेते हैँ और दोनों बांसुरी पकड़ संग संग नाचने लगते हैँ। कभी घूम घूम कभी आगे पीछे युगल आनन्द की सभी मुद्राओं में झूमने लगते हैँ। सभी सखियाँ युगल का नृत्य देख देख प्रसन्न होती हैँ और उनपर बलिहार जाती हैं। उनके हृदय में तत्सुखमयी अभिलाषा बढ़ने लगती है तथा युगल के आनन्द हेतु नए नए पद गायन करने लगती हैँ ।अभी बांसुरी के हृदय में ये भाव आता है कि चाहे इस समय मेरा सौभाग्य उदित हुआ है युगल ने मुझे अपने हाथों में थाम रखा है परन्तु उनके हाथों के मध्य भी दूरी मेरे कारण हो रही है ,मेरे युगल एक दूसरे को स्पर्श करके परस्पर आनन्दित रहें मुझे मध्य से हट जाना चाहिए। बांसुरी के हृदय में ये भाव आते ही श्यामसुन्दर श्यामा के हाथों से बांसुरी ले लेते हैँ और उसे अपनी कमर में खोंस देते हैँ । युगल परस्पर आनन्दमयी रहते हैँ। हर और आनन्द का वातावरण छाया हुआ है।
श्यामा श्याम आज दोऊ नाचें सखियाँ देत बधाई जी
शीतल मन्द मन्द पवन बहे आज मिलन ऋतु आई जी
बन बन मोरा श्याम जू नाचे श्यामा जू अकुलाई जी
छोड़ वंशी वादन को श्यामा श्यामसुंदर संग नचाई जी
श्यामा श्याम आज दोऊ नाचें सखियाँ देत बधाई जी
शीतल मन्द मन्द पवन बहे आज मिलन ऋतु आई जी
चहुँ और छायो आनन्द भारी सब सखियाँ मुस्काई जी
नवल चन्द्र दोऊ फिरत बौराय सखी सम्भार कराई जी
श्यामा श्याम आज दोऊ नाचें सखियाँ देत बधाई जी
शीतल मन्द मन्द पवन बहे आज मिलन ऋतु आई जी
कोऊ सखी युगल सेज बनावे कोऊ बीड़ा धर लाई जी
कोऊ पुष्पन माला करि पकरि कोऊ झारी भर लाई जी
श्यामा श्याम आज दोऊ नाचें सखियाँ देत बधाई जी
शीतल मन्द मन्द पवन बहे आज मिलन ऋतु आई जी
सब सखियन मिल युगल रिझाए सब सखियाँ हर्षाई जी
सुखी रहें नव युगल हमारे सखी उर यही आस समाई जी
श्यामा श्याम आज दोऊ नाचें सखियाँ देत बधाई जी
शीतल मन्द मन्द पवन बहे आज मिलन ऋतु आई जी
सखियाँ युगल के आनंद को बढ़ता देखती हैँ परन्तु धीरे धीरे कोमलांगी श्यामा जू नृत्य से श्रमित हो जाती हैँ और उनके मुख पर स्वेद कण झलकने लगते हैँ। युगल सुख हेतु सखियाँ पास ही उनके लिए पुष्प शैया का निर्माण करती हैँ। युगल सुख हेतु कोई जल की झारी ,कोई बीड़ा ,कोई पुष्पमाला बनाती है सब अपने कार्य में व्यस्त होने लगती हैँ और हृदय में अपने युगल के सुख की कामना करती हैँ।
क्रमशः
Comments
Post a Comment