तुझसे तेरे सिवा
तुझसे तेरे सिवा और क्या मांग लिया मैंने
एक बार कहदे मेरे मुक्क़दर में तू नहीं
तुझसे तेरे सिवा........
बस तेरी आरज़ू से ही तो ज़िन्दा हूँ
मुझे किसी और आरज़ू की आरज़ू नहीं
तुझसे तेरे सिवा........
जानती हूँ सुनते हो मेरी बातें सारी
पता है तुम हो छिपे जरूर कहीं न कहीं
तुझसे तेरे सिवा........
हूँ तो कीचड़ ही तुमको पसन्द हैँ फूल मगर
मेरी बदकिस्मती मुझें कोई फूल खिला ही नहीं
तुझसे तेरे सिवा........
कोई शिकवा नहीं अब जान ली औकात अपनी
खामोश करदो मुझे अब कुछ भी कहना नहीं
तुझसे तेरे सिवा........
तुझसे अब तुझको भी न मांगना है मुझको
अपने इस दर्द को भी तुमसे अब कहना नहीं
तुझसे तेरे सिवा........
सच है ख़ामोशी में ही ढूंढूँगी अब तुमको
इतनी हलचल में कुछ मुझे सुनाई देता नहीं
तुझसे तेरे सिवा........
तुझसे तेरे सिवा और क्या मांग लिया मैंने
एक बार कहदे मेरे मुक्क़दर में तू नहीं
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