मैं मुर्ख मतिहीन
मैं मूर्ख मतिहीन पातकी आन पड़ी तेरे द्वारे
भिक्षा दीजौ कुंवरि किशोरी दासी तेरी पुकारे
शरण माँहि रखियो स्वामिनी तेरो चरण मेरो अधारे
आस तेरो ही भोरी किशोरी दासी तोहे निहारे
विनय करूँ करि जोर नैनन जल सों चरण पखारे
तेरो नाम स्वामिनी अमृत भव से पार उतारे
चरण तेरे मेरी ठौर लाडली तुम बिन कौन उबारे
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