दर्द ही दर्द है

दर्द ही दर्द है कुछ कहते कुछ सहते हैँ हम
इश्क़ करके दर्द की गली में ही रहते हैँ हम

कुछ जलता है सुलगता सा है भीतर हर दम
क्यों पिघले से बहते हुए रहते हैं हम

हो मुमकिन ग़र तुमको सारी हंसी दे दूँ अपनी
और बदले में सह लूँगी सनम तेरे गम

सच तो ये है जब से इश्क़ की गली आए
होठों से हंसी हुई गायब और आँख रहती नम

क्या है हाल ए दिल तुमसे छिपाएँ कैसे
तेरे इंतज़ार में तड़पते रहते हैँ बस हरदम

ग़र हो ख़ुशी तेरी तो इधर का रुख करना
तेरे लिए अपनी पलकें बिछा रखेंगें हम

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