वंशिका @11

जय जय श्यामाश्याम

वंशिका 11

कान्हा आज बहुत खोये से हैं । राधा जू के बिना उनको कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा ।उनकी बड़ी विचित्र सी दशा हो रही है। वन में चले जा रहे हैँ । कोई खबर नहीं किधर जाना है क्या कर रहे । भरे हुए नेत्रों  से हर और राधा को ढून्ढ रहे । कभी किसी वृक्ष को देख रुक जाते । राधा की बात पूछते। कभी पत्ते पत्ते को छु रहे । इसपर मेरी राधा का नाम लिखा है । कभी भूमि पर श्री जू के चरण चिन्ह देखते और रज उठाने लगते। अपनी पूरी देह पर लगाने लगते। कभी पुष्पों से बातें कर रहे । बड़ी विचित्र स्थिति इनकी। ऐसे पहले कभी नहीं लगा। ऐसे तो राधा को कई बार सुना । आज इनको क्या हुआ । प्रेम में बांवरे हो गए आज रसिक शेखर। कभी बंसी को हाथ में उठा पूछते तू ही बता दे मेरी राधा कहाँ है। हाय ! राधा के बिना मेरा क्या जीवन है।  सब भूल बस राधा राधा ही कर रहे । सब खेल सब मस्ती सब शैतानी भूल गए। ना माखन चुराया न कोई शैतानी । सखाओं से भी छिप निकल आये। जैसे आज बात ही नहीं करेंगे किसी से। अपने में गुम हैं या राधा में पता ही नहीं।

     कुछ देर पश्चात अपनी बांसुरी निकाल लिए । बजाने लगे तो राधा राधा ही हो रहा । तू राधा राधा गा शायद मेरी प्रिया जू सुन लें । फिर ऑंखें मूँद बांसुरी बजाने लगते।कुछ समय बाद आँख खोली तो इनको सब राधा ही प्रतीत हो रहे। तभी सखियों की टोली आ गयी इधर। कान्हा को देख हैरान सी हो रही हैं । आज कान्हा को क्या हो रहा है । ये आज किस अवस्था में आ गए। उधर सब इनको ढून्ढ रहे की कान्हा कहाँ चले गए। इधर इनको कोई खबर नहीं हो रही । एक सखी इनको पूछती है, कान्हा  क्या हुआ ? इनको कुछ पता ही नहीं लग रहा। नैन मूँद बांसुरी बजा रहे राधा राधा राधा राधा ...........। सखी हट गयी इनको देख ।अब दूसरी कहती ये कोई नाटक कर रहे ,लीलाधर आज किसी नए रूप में ,चलो आज इनकी खबर लें । आज तो ये स्वयम् पकड़ में आ रहे । कान्हा कान्हा क्या हुआ तुम्हें?कान्हा को कुछ पता नहीं । जोर जोर से हिलाती उनको। उस सखी को देख राधा ही समझ बैठे। ओह !राधा तुम कहाँ थी ? कब से ढूंढ रहा था तुम्हें । वो सखी राधा ही लग रही उनको पुनः पुनः । सखी ने सोचा आज इनको क्या हुआ । कुछ शरारत आई मन में । बोली कान्हा मैं राधा न हूँ मैं तो मालती हूँ, तुमको राधा के पास जाना है । हाँ हाँ तुम छोड़ आओगी एक क्षण में श्यामसुन्दर बोले। हाँ कान्हा जू । तुम ऐसे करो  आगे एक कुआँ है मुझे जल लेना है ।ये जो कुआँ है न आगे इसको खाली करदो। मैं तुम्हें राधा के पास ले जाउंगी। कान्हा अपनी बांसुरी और पीताम्बर एक ओर रखते हैँ और बाल्टी से कुँए से जल निकलने लगते। हृदय में बस एक ही भाव जल्दी से ये कार्य पूर्ण हो और ये सखी मुझे मेरी राधा के पास ले जाए।

    कितना समय हो गया कान्हा जल निकालते जा रहे। राधा का ही स्मरण हो रहा । मिलने की उत्सुकता बढ़ती जा रही। पर कुआँ तो खाली हुआ नहीं । भूखे प्यासे आज राधा राधा ही हो रहा । जल निकाल रहे ।आज तो इनके नैन कटोरे भी जल बरसा रहे । सब सखी आज इनको देख हैरान हो रही । अब सखी से इनकी हालत नहीं देखी जा रही । वो तो इनको काम में लगा गयी अब कुआँ कैसे खाली हो । मालती सखी ने सोचा कान्हा जू को आज श्री जू का इतना विरह हो गया । इनको कोई सुधि ना रही । अगर मेरी लाडली सखी को इनका पता लगा उनको कितना कष्ट होगा । ये बहुत गलत हो गया । इनको सुबह से कुआँ खाली करवाने में लगा दिया । भूखे प्यासे ये राधा राधा ही कर रहे।

   मालती सखी अब मन में पश्चाताप करती है और लाडली जू से क्षमा मांगती है। अब वो कान्हा जू को लाडली के पास ले जाती है और बोलती है लो स्वामिनी जू को सब बताती हैँ। लाडली उनको देख बहुत प्रसन्न हो रहीं और सब सखियाँ बहुत हँस पड़ती। लाडली जू के स्पर्श से कान्हा की प्रेम मूर्छा टूटती है और वो स्वयम् भी अपनी स्थिति सुन हैरान हो रहे। आज उन्हें प्रेम की विचित्र स्थिति का आस्वादन हुआ|आज बांसुरी ने कान्हा की इस विचित्र भावमयी प्रेममयी दशा को देखा है और युगल के ऐसे अद्वितीय प्रेम को देख देख इसके नैन पुनः पुनः प्रेमाश्रु प्रवाहित करते हैँ।

क्रमशः

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