नीलमणी
पुनः पुनः ढूंढते हैं
नैन मेरे भरे हुए
दृष्टि उठी एक बार
सामने आकाश पर स्थिर हुई
नीलमणी
तुम ही तो हो
ये विशाल नीलिमा लिए
आए हो तुम
मेरे लिए
हाँ
मेरे लिए
डूब जाना चाहती थी
पी जाना चाहती थी
घुल जाना चाहती थी
उस नीलकान्ति में
जो नैनों से भीतर उतर रही
परन्तु सहसा
देखी मैंने तुम्हारी
ऊँचाई
हाय !!!
हृदय पर आघात हुआ जैसे
तुम इतनी दूर
इतनी दूर
कैसे आओगे
भर गए नैन
बहने लगे
फिर क्या अनुभव किया
हाय !
मेरे अश्रु
अश्रु में भी तुम हो
अश्रु बन गए
मुझे छूने को
भीतर तक सिहरन
तुम्हारे स्पर्श से
तुम सच्चे प्रेमी हो
तुम ही केवल
तुम सा प्रेम कैसे होगा
मुझे कभी
हृदय कहे
तुम ही मेरे
मेरे
मेरे
..........
मेरे नीलमणी
पुनः अश्रु से भरे नैनों से
फिर से तुम्हें खोज रही
उसी आकाश में
यूँ ही चलता रहता है
तुम्हारा ये खेल
मेरे
मेरे
........
मेरे नीलमणी
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