बिरहन कबहुँ

बिरहन कबहुँ पिय को देखे नित नित उर रह्यो अकुलाय
पुनः पुनः द्वार दृग कोर निहारे पिय अबहुँ आय अबहुँ आय
विधना कैसो भाग लिखे री बाँवरी बैठी नीर बहाय
आन मिलो अबहुँ पिय प्यारे व्यर्थ स्वास ना बीते जाय
प्राणन देह माँहि कैसो राखूं तू ही सखी मोहे दियो बताय
एकहुँ बार श्याम नाहीं निरखे बाँवरी दियो जन्म गमाय

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