याद तेरी क्यों
याद तेरी मुझको क्यों तड़पा देती है
दर्द उठता है इक आग लगा देती है
बढ़ती ही जाती है ये आग नहीं बुझती कभी
जाने क्यों ये आग को हवा देती है
याद तेरी ....
बहते हैँ अश्क़ रह रहकर मेरी आँखों से
जाने क्यों इश्क़ करने की सज़ा होती है
याद तेरी....
कभी ले जाओ पकड़ हाथ मुझे संग अपने
तुमसे जो दूरी है दिल जला देती है
याद तेरी ....
बेख़ुदी सी हुई जाती है तेरे इश्क़ में
तेरी याद खुद भी बेगाना बना देती है
याद तेरी .....
क्यों उठती है तड़प दिल में रह रह कर मेरे
दिल जले हैँ पहले ही ये और जला देती है
याद तेरी ....
नहीं बुझती ये अश्क़ों से और बढ़ जाती है
ढूंढती है तुझको बस तुझको सदा देती है
याद तेरी.....
आ महबूब मुझे रख ले पनाह में अपनी
तेरे इश्क़ में ये दीवाना बना देती है
याद तेरी ....
है तेरे दिल भी बेताबी इस इश्क़ की बड़ी
तेरी सांसें इस दिल को बता देती हैं
याद तेरी.....
सुनती हूँ धड़कनें तेरी अब अपने दिल में
तेरी हर बात ये मुझको सुना देती है
याद तेरी.....
याद तेरी मुझको क्यों तड़पा देती है
दर्द उठता है इक आग लगा देती है
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