22

श्यामाश्याम

वंशिका 22

   संध्या होने को है, पश्चिम में आकाश में लाली बिखरी हुई है। मन्द मन्द समीर प्रवाहित ही रही है। श्यामाश्याम यमुना तट पर एक वृक्ष के नीचे बैठे हैँ। श्याम सुंदर ने हाथ में वंशिका को उठा लिया ,आज वंशिका ने प्रेम नाद छेड दिया है। आहा ! सुरमयी संगीत लहरियां श्यामा जू के हृदय को तरंगायित कर रही हैँ। श्यामा जू के रसीले नैन श्यामसुन्दर के नैनों से जा मिलते हैँ। कुछ क्षण वंशी वादन रुक गया परन्तु वंशिका इस रस जड़ता को हटाने को लालायित हो रही है ताकि युगल का आनन्द बढ़ सके।

       आहा ! श्री प्रिया तो उन्मादिनी हुई जा रही। श्यामा घूम घूम कर नृत्य करने लगती है। कभी कुछ गाने लगती है परन्तु स्वर श्यामसुन्दर के हृदय को आनन्दित कर रहे। श्री प्रिया अपने एक एक आभूषण को निहारने लगती है। उनके कंगन खन खन न करके आज कृष्ण कृष्ण कर रहे। नुपुर के घुंघरू भी श्री प्रिया को कृष्ण कृष्ण नाम सुना रहे। जैसे श्री श्यामा के रोम रोम में उनके प्रियतम का प्रेम जगा रहे हैँ। आहा !श्यामा भाव विभोर हो नृत्य कर रही है उसे निहार निहार श्यामसुन्दर अपना वंशी वादन करते रहते हैँ। श्री प्रिया कभी कभी श्यामसुन्दर की और देख लजाने लगती है।

आज सखी पिया आये मोरे अँगना
टूट गयी चूड़ी खनक गयो कँगना
आज सखी .....

सजना संग मेरी प्रीत पुरानी
प्रीत सजन मोहे तोसे निभानी
अब मोहे तेरे ही रंग में रँगना
आज सखी पिया आये मोरे अँगना
टूट गयी चूड़ी खनक गयो कँगना
आज सखी .....

साँस साँस मेरी पिया पिया गाये
तुम बिन पिया मोरे चैन ना आवे
तुम ही सिंगार तेरे लिए सजना
आज सखी पिया आये मोरे अँगना
टूट गयी चूड़ी खनक गयो कँगना
आज सखी .....

पिया पिया रटती बाँवरी भई मैं
पिया बिन जागी रतियाँ कई मैं
सोऊँ तो देखूँ पिया तेरा सपना
आज सखी पिया आये मोरे अँगना
टूट गयी चूड़ी खनक गयो कँगना
आज सखी .....

लाज की मारी मर मर जाऊँ
पिया तोसे नहीं अखियाँ मिलाऊँ
हाल छिपाऊँ पिया से सखी अपना
आज सखी पिया आये मोरे अँगना
टूट गयी चूड़ी खनक गयो कँगना
आज सखी .....

   सखियों ने युगल के हृदय में उमड़ रहे प्रेम भाव देख यहीं उनके लिए पुष्प शैया का निर्माण आरम्भ किया है। रंग बिरँगें सुगन्धित पुष्पों से बहुत सुंदर सजावट की है। श्यामसुन्दर श्री प्रिया को देख अत्यंत उन्मादित हो रहे हैँ । अभी तो उनके लिए बंसी वादन असहज होने लगा है। श्री प्रिया का नृत्य ,श्री प्रिया का गायन ,श्री प्रिया का सौंदर्य,श्री प्रिया का लावण्य,श्री प्रिया की वो मधुर चितवन आज इनकी रस तृषा को बढ़ा रही है। युगल के आनन्द से वंशी और सभी सखियाँ आनन्दित हैँ।

देखहि प्रीतम मुस्काय रही श्यामा ।
नैनन कोर सों निरख निरख पिय ,अद्भुत रस बरसाय रही श्यामा।
मनमोहिनी छवि पिय की निरखी ,नैनन नाँहि समाय रही श्यामा।
पुलकित देह हिय मधुर रस, बाँवरी बन हर्षाय रही श्यामा।
बलिहारी सखी पिय अपने पर ,नवल रस पान कराय रही श्यामा ।
ऐसो सुख नित बरसे युगल पर, सखियन सों नेह लुटाय रही श्यामा।

क्रमशः

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