अपने अश्कों से

अपने अश्कों से चल आज सजा दूँ तुझको
इक नाकाम सी कोशिश की भुला दूँ तुझको

शायद शौक रखते हो तुम खेलने का मुझसे
चल महबूब दो घड़ी आज खेला दूँ तुझको
अपने अश्कों से .......

सच तो ये है मुझे कभी इश्क़ की तमन्ना न हुई
मुद्दत से छिपा था सच आज बता दूं तुझको
अपने अश्कों से ........

ले चलो दुनिया से कहीं दूर जहाँ तुम रहते
मेरी दुनिया बड़ी फीकी मैं कैसे बुला लूँ तुझको
अपने अश्कों से .........

आ महबूब मेरे दामन से लिपट जा कुछ पल
इस दुनिया की नज़रों से मैं बचा लूँ तुझको
अपने अश्कों से चल आज सजा दूँ तुझको
इक नाकाम सी कोशिश की भुला दूँ तुझको

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून