वंशिका@4

जय जय श्यामाश्याम

वंशिका 4

श्यामसुन्दर आज सखाओं के संग जमुना जी मे विहार करने गए हैँ। सभी सखा अपने आभूषण वस्त्र जमुना पुलिन पर एक और रख रहे हैँ। श्यामसुन्दर भी अपने पीताम्बर पर मयूर पंख ,आभूषण,बांसुरी सब रखकर यमुना जी में सखाओं संग आनन्द करने लगते हैं।

    आज पीताम्बर पर सभी आभूषण,मोरपंख और बांसुरी एक साथ पड़े हुए हैं। सभी एक दूसरे के भाग्य की प्रशन्सा करने लगते हैं कि तुम्हारा अहोभाग्य है जो तुम्हें प्रियतम श्यामसुन्दर का सानिध्य प्राप्त है। सभी मोरपंख को कहते हैँ तुमने ऐसे कौन से पुण्य किये जो तुम्हें श्यामसुन्दर अपने शीश पर धारण करते हैं।

धन्य हो मयूरा तेरो पंख सीस साजे
तू रहे सीस हाथ मुरली विराजे
धन्य हो मयूरा......

बनके मयूर श्याम राधा को रिझावें
तेरो जैसो भाग कौन खग ऐसो पावे
मोर पंख श्याम मुकट में विराजे
धन्य हो मयूरा......

गह्वर वन मोर कुटी है बरसाना धाम
कैसो तेरो भाग मोर बन बन नाचे श्याम
मोर पंख श्याम मुकट में विराजे
धन्य हो मयूरा......

कौन तप कीन्हों तूने श्याम धन पायो है
श्याम ने तुझे अपने शीश लगायो है
मोर पंख श्याम मुकट में विराजे
धन्य हो मयूरा.......

मैं भी बन जाऊँ वृन्दावन का मोर ही
श्याम संग वास मिले श्याम मेरो ठौर ही
मोर पंख श्याम मुकट में विराजे
धन्य हो मयूरा.....

इस पर मयूर अपने भाग्य पर इतराने लगता है। फिर सभी आभूषणों के सौभाग्य को सराहते है।सभी पीताम्बर से कहते हैं तेरे भी भाग्य हैँ जो श्यामसुन्दर तुझे धारण करते हैँ तो पीताम्बर ये उत्तर देता है कि मेरा सौभाग्य श्री कीर्ति कुमारी के अंग वर्ण के समान होना है तभी मुझे प्रियतम श्यामसुन्दर का स्पर्श प्राप्त है। सभी मिलकर श्यामसुन्दर की बांसुरी की सराहना करते हैँ। ये बांसुरी तो नित्य प्रति प्रियतम की अधर सुधा का पान करती है। हाय ! तू प्रियतम के अधरों पर नित्य खेलती है तेरे जैसा भाग्य सच में किसी का नहीं है। बांसुरी कहती है मेरा सौभाग्य प्रियतम के अधरों का स्पर्श नहीं अपितु प्रियतम द्वारा मुझमें भरा हुआ श्री राधा का नाम है। यदि श्री स्वामिनी का नाम न हो तो प्रियतम कभी मुझे अधरों पर धारण न करें । श्री स्वामिनी का मधुर नाम वो मुझमें भरते हैं जिसके द्वारा समस्त जड़ चेतन में प्राणों का संचार होता है। मेरी स्वामिनी जू श्री राधा का नाम ही मेरे प्राण हैं। उनके नाम बिना मेरा क्या मूल्य है। मैं तो केवल बांस की एक पोरी हूँ।  नन्दनन्दन श्री श्यामसुन्दर मुझे इसलिए नित्य संगिनी रखते हैँ क्योंकि वो हर समय श्री राधा नाम की मधुर प्रेम सुधा का पान करते रहते हैँ और उनको उनकी प्राण प्रिया श्री वृषभानु नंदिनी श्री श्यामा का नाम सुनाना ही मेरा जीवन है।

   अंत में सभी कहते हैं की हमारा सौभाग्य है कि हम श्यामसुन्दर के संग होते हुए श्री श्यामा को आनन्द देते हैं। आभूषण का जीवन श्री श्यामसुन्दर का श्रृंगार करना है जिससे श्यामसुन्दर नहीं श्री श्यामा को आनन्द हो। अंत में सभी एक दूसरे को राधा नाम की महिमा सुनाते हैँ और अपने अपने सौभाग्य पर इतराते हैँ की हम सब किशोरी जू के कृपा पात्र हैँ।

वृषभानुजा सुता कीर्तिदा
जय जय रासेश्वरी नमो नमः

आह्लादिनी सुख राषिणी
जय जय ब्रजेश्वरी नमो नमः

गौराँगिनी श्यामा कृष्णप्रिया
जय जय अखिलेश्वरी नमो नमः

कृष्णवल्लभा राधे कृष्णप्रिया
जय जय सर्वेश्वरी नमो नमः

मृदुभाषिणी श्यामा आनन्दिनी
जय जय गौरेश्वरी नमो नमः

कमलनयनी राधे आनंदकन्दिनी
जय जय सुरेश्वरी नमो नमः

कृष्णवामांगिनी श्यामा राधिके
जय जय कृष्णेश्वरी नमो नमः

क्रमशः

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