काहे रे पपीहरा

काहे रे पपीहरा तू पीहू पीहू गावै
नित बिरहन को जिया जरावे

मत कूक री तू कोयलिया कारी
रुत यहां होय अबहुँ बसन्त वारी

पिया बिन मोर काहे नाच दिखावै
बिरहन पर कोऊ तरस न आवै

मेघा काहे तू रिम झिम बरसै
बिरहन अखियन नित नित तरसै

कोऊ संदेस जाय पिय को दीजौ
अबहुँ अपनी बाँवरी की सुधि लीजौ

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