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जय जय श्यामाश्याम

वंशिका 19

    आज स्वामिनी जू अत्यंत विरहित हो गयी । श्री प्रिया के नेत्रों से अविरल अश्रु धारा बह रही है। श्री प्रिया पुनः पुनः उस मार्ग की ओर निहार रही हैँ जहां से प्रियतम प्रवेश करते हैँ । यूँ तो श्यामाश्याम सदैव अभिन्न हैँ परन्तु प्रगाढ़ रसम्यता और लीला हेतु विरह लीला भी होती है। श्यामा जू की विरह वेदना क्षण क्षण बढ़ती जा रही है।

विरह पीर मन में हाय नित नित उठे भारी प्रियतम
अब आन मिलो अब आन मिलो कह कह हारी प्रियतम
सुधि भूली खान पान को रैन दिवस अकुलाउँ प्रियतम
कौन विधि रीझें हाय मैं कौन विधि रिझाऊँ प्रियतम
राह पखारूँ बाँह पसारुं नित नित तुम्हें पुकारूँ प्रियतम
अब आये करूँ हाय प्रतीक्षा भारी कब नैन भर निहारूँ प्रियतम
सुनो विकल हृदय की वेदना नैन बसें दिन रैन प्रियतम
बन बाँवरी इत उत् डोलूँ तुम बिन पाऊँ ना चैन प्रियतम
तुम मम जीवन प्राण सखे अब हुई देर भारी प्रियतम
बाँवरी की सुधि लीजो अब आन मिलो बनवारी प्रियतम

            श्यामसुन्दर को आने में विलम्ब हो रहा है और श्यामा जू के हृदय की व्याकुलता बढ़ती जा रही है। एक एक श्वास से प्रियतम श्यामसुन्दर को पुकारने लगती है। श्यामसुन्दर ही तो श्री श्यामा के प्राण हैँ,उन्हें देखे बिना इस बाँवरी विरहणी को किस प्रकार धैर्य होगा। श्री प्रिया का एक एक शब्द उनके प्रियतम हेतु है। अपना तो जैसे कुछ रखा ही नहीं। प्रेम में अपना रहता ही क्या है ?सब कुछ प्रियतम का ही तो हो जाता है। श्री प्रिया तो प्रेम सिंधु हैँ इनके प्रेम का वर्णन किस प्रकार शब्दों में हो सकता है। हाय ! विरहणी के हृदय की पीड़ा कौन कहे!

हो शब्द तुम्हीं मेरे मन के हो मेरे मन के भाव  प्रियतम
प्रियतम चरणों में अर्पित रहूँ यही मन मेरे का चाव प्रियतम
श्वास श्वास तेरा नाम रटूँ सदा तुम संग रहे संयोग प्रियतम
नित्य नित्य हो मिल्न अपना ना हो दुखमयी वियोग प्रियतम
तुम ही मेरी साधना हो तुम ही बनो मेरे साधन प्रियतम
नित्य संग तेरे मैं रमण करूँ तुम ही हो नित्य अराधन प्रियतम
नहीं जानू जप तप नेम कोई ओर तुम ही मेरा नेम प्रियतम
नित्य मेरे हृदय में वास करो केवल तुम संग हो प्रेम प्रियतम
मन के भीतर मेरे तुम ही करो ऐसे वास सदा प्रियतम
नाम ना भूलूँ एक क्षण भी तेरे बिना ना एक श्वास प्रियतम
जग जंजाल से मोहे उबारो ले चलो अपने ही संग प्रियतम
सब रंग फीके इस दुनिया के हो केवल प्रेम का रंग प्रियतम
सतरंगी चुनर मेरी रँगदो अब अपने प्रेम वारी प्रियतम
प्रियतम प्रियतम ही रहें शेष तन मन सब बलिहारी प्रियतम

    सभी सखियाँ श्री प्रिया को देख देख अश्रु प्रवाहित करने लगती हैँ। जो भी सखी श्री प्रिया के पास आती है आज श्री प्रिया की स्थिति देख स्व्यम रुदन करने लगती है। यदि सभी सखियाँ यूँ ही विरहित होने लगें तो इस बाँवरी विरहणी को कौन सम्भालेगा । हाय !अपने हृदय के आवेग को रोक श्री प्रिया को सम्भालना होगा नहीं तो ये विरह मूर्छा में चली जायेंगीं। सखियाँ श्री प्रिया को आश्वासन दे उन्हें धैर्य बंधाने लगती हैँ। अपनी स्वामिनी की ये दशा भी उनके प्राण ले रही है।

रहें सदा आनन्दमग्न प्रियतम यही सदा चाह करूँ
प्रियतम ही हों जीवन मेरा नहीं जग की कुछ परवाह करूँ
सदा सदा रहूँ प्रियतम संग अपने सदा रहूँ उन्हें रिझाती मैं
प्रियतम मेरे रहें आनन्दित तभी आनन्द हृदय पाती मैं
रहे न कोई शेष कामना प्रियतम सुख ही बने मेरा जीवन
प्रियतम प्रियतम रटूं सदा मैं प्रियतम मेरा तन मन धन
सकल पदार्थ अर्पण करदूं सदा प्रियतम आनन्द चाहूँ मैं
प्रियतम रहें मेरे हृदय भीतर प्रियतम प्रियतम ही गाऊँ मैं
मुझमें और मेरे प्रियतम में ना दूरी कभी कोई शेष रहे
प्रियतम चरणों में रहूँ समर्पित बस प्रियतम प्रेम विशेष रहे
मेरे प्रियतम रहें मन भीतर कभी न हो मुझे उनका वियोग
प्रियतम प्रियतम रटूँ मैं बाँवरी प्रियतम नाम का साधूँ जोग
तजो ना कभी मुझे प्रियतम तुम बिन कैसा हो ये जीवन
तुम ही श्वास श्वास में हो तुम मम जीवन प्रियतम प्राणधन

    देखो श्यामा तुम्हारे हृदय की प्रत्येक धड़कन में कौन है ? देखो देखो श्यामा श्यामसुन्दर तुमहारे संग खेल रहे हैँ। श्यामसुन्दर !कहाँ हैँ श्यामसुन्दर। श्यामा को पिछले पहर सखियों संग हुई  छुपा छुपाई की क्रीड़ा स्मरण हो गयी। अच्छा ! हाँ सखी श्यामसुन्दर तो छिपे हुए हैँ,हाँ हाँ मैं जानती हूँ वो कदम्ब के वृक्ष के पीछे हैँ। सखी देखती है श्यामा की स्थिति बदल रही है परन्तु ये क्या श्यामा तो तुरन्त उठ उस ओर चल दी। श्यामा जैसे ही वृक्ष के पास पहुंचती है श्यामसुन्दर की बांसुरी वहीं मिल जाती है। श्यामा के हृदय में प्रसनता के पुष्प खिलने लगते हैँ। श्यामसुन्दर भी यहीं कहीं हैँ ये कहकर बांसुरी को अपने हाथों में उठा लेती है।

   क्रमशः

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