तितली

बन जाती तितली छोटी सी
पंखों में पर जान नहीं
कभी तुम्हें छू भी पाऊँगी हाय
ऐसी मेरी उड़ान नहीं

रंग बिरंगे पंख मेरे हाय कभी
तुम भी कभी देख पाते
नाच नाच रिझाऊँ कभी तुमको
अरमान दिल में रह जाते

कभी देखती फूल मैं भी तुम्हारे
आस पास जो हैं बिखरे
कभी सजाती वो रंग आँखों में
हर ओर जो रहे निखरे

जानती हूँ नहीं हूँ प्रेमी कोई
ना ही हृदय कोई प्रेम पिपासा
पर जाने क्यों हृदय बहता है
करता है जाने कोई आशा

जगत के फूल लगते कागज़ अब
कोई रस नहीं इनसे आता
तेरे चरणों में जो हों पुष्प समर्पित
मुझे उनका ही संग भाता

दूर न रखना मुझको प्यारे अब
दूरी हृदय न ये सह पायेगा
अथाह वेदना मन में उठती है
सब अश्रु संग बह जायेगा

हूँ तितली मैं तेरे गुलशन की
पर इतनी मेरी उड़ान नहीं
तुम ही आकर संग रखना
मेरे पंखों में इतनी जान नहीं

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