कहाँ हो तुम
कहाँ हो तुम ये दिल पल पल इंतज़ार करे
मुझको इस इश्क़ की तड़प कितना बेकरार करे
हमको यकीन है साहिब तेरी मोहबत का
पर अपने रोते हुए दिल का कैसे इतबार करें
कहाँ हो तुम .......
बड़ी गुस्ताखियाँ की हैँ साहिब मुद्दत से मैंने
नज़र मिलाऊँ कैसे ये दिल मुझको शर्मसार करे
कहाँ हो तुम ..........
तुम ही करो कैसे समझाऊँ बेकरार दिल को
मेरा होकर भी क्यों मेरा न ऐतबार करे
कहाँ हो तुम ........
कभी तो रोता है ज़ार ज़ार तेरी याद में ये
कभी हरेक शै में तेरा दीदार करे
कहाँ हो तुम ........
हमको लग गया है मर्ज़ तेरे इश्क़ वाला साहिब
खुदा करे ये मर्ज़ मुझको और बीमार करे
कहाँ हो तुम ........
मुझको अपने पहलू में छिपा लो यूँ हमदम
इश्क़ तेरा मेरी रूह को अब गिरफ़्तार करे
कहाँ हो तुम ये दिल पल पल इंतज़ार करे
मुझको इस इश्क़ की तड़प कितना बेकरार करे
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