इश्क़ का रोग
इश्क़ का रोग लग गया अब जान नहीं जाती
हाय मोहन तेरी याद मेरे दिल को है जलाती
रह रह कर उठते हैँ दिल में तूफ़ान मेरे
तेरे इश्क़ की ये शमा फिर भी बुझ न पाती
इश्क़ का रोग....,
खुद से हो गए हैं अजनबी हम ऐसे
देखूं जो आईने में सूरत न समझ आती
इश्क़ का रोग.....
दिल से निकलती हैँ हाय आहें कितनी
हर धड़कन मेरी ये मोहन तुझे बुलाती
इश्क़ का रोग.....
जाने कैसी लग गयी है ये प्यास मुझको साहिब
जितना मैं पीती हूँ उतनी ही बढ़ती जाती
इश्क़ का रोग......
तेरा नाम ले लेकर रोना है काम मेरा
अश्कों से अपने मैं तेरी राह सजाती
इश्क़ का रोग......
चल इतनी इनायत कर आज कत्ल मेरा करदे
दिल की लगी ये साहिब मुझको बहुत जलाती
इश्क़ का रोग..,...
सोचा था खामोश रह लूँ अब न कुछ कहूँगी
पर दिल की लगी ऐसी बेबस मैं हो जाती
इश्क़ का रोग लग गया अब जान नहीं जाती
हाय मोहन तेरी याद मेरे दिल को है जलाती
Comments
Post a Comment