क्यों इस तरह
क्यों इस तरह धड़कनें बढ़ाते हो तुम
बेकाबू से दिल के अरमान मचल जाते हैँ
देखते हो जो एक बार नज़र भरकर
हम कहाँ बेखुदी से सम्भल पाते हैँ
क्यों इस तरह .......
पीते हैँ जितना हम तेरे मयखाने से
उतने हम और प्यासे हुए जाते हैँ
क्यों इस तरह ......
तेरे आगोश में हमें होश कहाँ रहती है
मिलकर क्यों हम तुझको फिर बुलाते हैँ
क्यों इस तरह ......
इश्क़ में तेरे क्या मज़ा है साहिब
रोज़ रोज़ डूबते ही चले जाते हैँ
क्यों इस तरह .......
जब से तेरे इश्क़ का मर्ज़ है लगा
महफ़िलों से हम कितना घबराते हैँ
क्यों इस तरह .......
तन्हाइयों में सुनते हैँ सदाएँ तेरी
और तुझको दिल की सब बताते हैँ
क्यों इस तरह धड़कनें बढ़ाते हो तुम
बेकाबू से दिल के अरमान मचल जाते हैँ
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