वंशिका 25

जय जय श्यामाश्याम

वंशिका 25

     श्री प्रिया एक वृक्ष की ओर देख रही है। मन्द मन्द सुवासित पवन बह रही है। सूर्य देव भी अपनी आभा बिखेर रहे हैँ परन्तु उनकी उष्मता सुखमयी प्रतीत हो रही है। श्री प्रिया बहुत देर से मौन हैँ परन्तु दृष्टि उसी वृक्ष की ओर है। श्री प्रिया उस वृक्ष को श्यामसुन्दर ही मान बैठी है। पवन वेग से उस वृक्ष की शाखाएं हिलने लगती है। श्री प्रिया को उनके प्यारे जू आलिंगन का निमंत्रण देते हुए प्रतीत होते हैँ। श्री प्रिया के हृदय में प्रेम लहरी तरंगायित होने लगती है। एक बार तो श्री प्रिया नैन मूंद लेती है पुनः पुनः उसी ओर निहारती है। मचलते हुए हृदय में प्रेम रस हिलोरे ले रहा हो तो सम्भलना भी तो कठिन हुआ जाता है। पुनः शाखाओं के हिलने से हृदय के भीतर स्पंदन तीव्र होने लगता है। श्री प्रिया कुछ लजाने लगती है और अपने हाथ नैनों पर रखती है परन्तु हृदय में प्रेम आह्लाद और अधरों पर मृदु हास्य उभरने लगता है।

    तभी श्यामसुन्दर आकर प्यारी जू के हाथों को स्पर्श करते हैँ। श्री श्यामा रस से विभोर हुई जड़ होने लगती है। अपने सामने श्यामसुन्दर को देखती है फिर उसी वृक्ष को देखती है। पुनः पुनः अधरों पर मृदुल हंसी आ जाती है। श्यामसुन्दर प्यारी जू से उनके आनन्द का कारण पूछते हैँ। प्यारी जू शब्दहीन हैँ परन्तु उस वृक्ष की ओर इशारा करती है। श्यामसुन्दर को लगता है प्यारी जू को उस वृक्ष के पुष्प आनन्द दे रहे हैं। श्यामसुन्दर श्यामा को बंसी पकड़ाकर उस वृक्ष की ओर जाते हैँ। बंशी जैसे ही श्री प्रिया के हाथ का स्पर्श प्राप्त करती है ये भी उन्मादिनी हो जाती है। वंशिका को देख श्री प्रिया आनन्दमग्न होने लगती है। वंशी श्री स्वामिनी की स्तुति करती है।

श्री राधिके नमःस्तुते
श्री राधिके नमःस्तुते
श्री राधिके नमःस्तुते

प्राणेश्वरी कुंजेश्वरी रासेश्वरी परमेश्वरी ब्रजेश्वरी सुरेश्वरी
श्री राधिके नमःस्तुते
श्री राधिके नमःस्तुते
श्री राधिके नमःस्तुते

आनन्दिनी भानुनन्दिनी सुनन्दिनी संगिनी मृदुले कोमल अंगिनी
श्री राधिके नमःस्तुते
श्री राधिके नमःस्तुते
श्री राधिके नमःस्तुते

हितकारिणी सुखकारिणी सुखसारिणी विस्तारिणी जगत पलनहारिणी
श्री राधिके नमःस्तुते
श्री राधिके नमःस्तुते
श्री राधिके नमःस्तुते

भामिनी सुवासनी कृपलानी दयालिनी कृपालिनी ममपालिनी
श्री राधिके नमःस्तुते
श्री राधिके नमःस्तुते
श्री राधिके नमःस्तुते

हर्षिणी रसवर्षिणी तरंगिणी कृष्णसंगिनी श्यामली नवलरंगिणी
श्री राधिके नमःस्तुते
श्री राधिके नमःस्तुते
श्री राधिके नमःस्तुते

    वंशी श्री प्रिया से कहती है प्यारी जू आप मेरी स्वामिनी हो। मुझे आपसे दूर रहना अत्यंत पीड़ा देता है। आपकी ही धरोहर हूँ श्यामसुन्दर के पास। स्वामिनी जू मुझे आप अपने पास ही रख लो। श्री प्रिया ये सुनकर हंसने लगती है। श्री श्यामा वंशी से कहती है वंशिके! श्यामसुन्दर के पास तुम मेरी प्रसन्नता के लिए हो। तुम राधा नाम सुना प्रियतम को आनन्दित करती तुम मुझे भी आनन्द प्रदान करती हो। बाँवरी सी वंशिका अपनी स्वामिनी जू के आनन्द से आनन्दित हो अश्रु प्रवाहित करने लगती है तो श्री प्रिया उसे अपने हृदय से लगा लेती है। इतने में श्यामसुन्दर बहुत सारे पुष्प लेकर आते हैँ तथा अपने पीताम्बर से पुष्प निकाल प्यारी जू पर डालने लगते हैँ। युगल का प्रेम उन्माद बढ़ने लगता है जड़ चेतन सब उनके प्रेम रस से सराबोर होने लगते हैँ।

  क्रमशः

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