क्या दूँ तुझको

क्या दूँ तुझको मैं अश्कों के सिवा
अब तो मुझे ये भी अपने नहीं लगते
ग़र होते मेरे तो मेरी आँखों में ही रहते
क्यों तेरा नाम लेकर दौड़ने लगते हैँ

फिर से छेड बैठे हैँ दीवाने तेरे आज
तेरा ही नाम सुन सुन रो रहे मेरे साथ

जाने दो मुझे तुम मोहबत करो उससे
मुझे तो मोहबत का सलीका ही नहीं

देखूं जो तेरी मोहबत तो खुलती नहीं जुबान
खुद को तेरा आशिक यूँ ही मान लिया मैंने

इश्क़ करना तो कोई सरफिरों का काम है
हमसे क्या बनता है समझदार बने बैठे हैँ

क्यों सुनते हो मुझसे मेरी बेवफाई के किस्से
अश्कों में ही बह जाऊँ अलफ़ाज़ गुम करदो

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