20

जय जय श्यामाश्याम

वंशिका 20

   श्री प्रिया बांसुरी को अपने हाथों में उठा लेती है। बांसुरी मिलने पर श्री प्रिया की विरह वेदना कम तो हुई पर वहां तो कोई क्रीड़ा न हो रही। श्री प्रिया को ये स्मरण न रहा कि अभी तो वह अपने कक्ष में थी वहीं से रुदन करती करती यहां आई हैँ वो तो पिछले प्रहर की क्रीड़ा को ही जी रही जब श्यामसुन्दर और सखियों संग छिपने की खेल हो रही थी। श्यामा बांसुरी को हाथ में ले बातें करने लगती है।

     वंशिके ! मुझे बता दे श्यामसुन्दर कहाँ छिपे हैँ। श्यामा बांसुरी को प्रेम से सहलाने लगती हैँ। कभी उसे हृदय से लगा लेती है कभी चूमने लगती है। हाय ! वंशिका के हृदय की स्थिति तो कहने में न आएगी। एक तरफ तो अपनी स्वामिनी जू की विरह व्यथा को देख व्यथित हो रही है दूसरी ओर श्यामा का दुलार उसे प्रेम रस में भिगो रहा है। जो भी हो उसे तो हर चेष्ठा अपनी स्वामिनी जू की प्रसन्नता हेतु ही करनी है। बांसुरी श्यामा जू को कहती है प्यारी जू श्यामसुन्दर तो छिपे हुए हैँ  , जैसे वो नित्य प्रति आपको पुकारते हैँ वैसे ही आप भी उनको प्रेम लहरियां छेड़ पुकारो। प्रियतम अधिक देर छिपे न रह सकेंगें। श्यामा जू प्रसन्न हो जाती है और बांसुरी अपने अधरों पर रख लेती है। सखियाँ भी आज बांसुरी को देख प्रसन्न हो गयी जो भी हो आज विरहित प्रिया जू को प्रियतम के मिल्न की आशा देकर सम्भाल ही लिया है।

     श्री प्रिया अधरों पर बांसुरी रख कान्हा का नाम पुकारने लगती है। बांसुरी सोचती है कोई विरह राग न छेड़ दूँ कहीं श्री प्रिया पुनः विरहित न हो जाये।

सखी री आयो मेरो पियो को संदेस ।
कीजौ सिंगार री मेरो आवे है बृजेश ।।

पिया बिनहुँ नाँहि प्राण धरूँ पिया मेरो प्राण ।
प्रेम ताहीँ धरूँ सखी निज देह माँहि प्राण ।।

ऐसो मेरो पिया सखी प्रेम माँहि रमत ।
पिया पिया रटूं सखी पिया हिय बसत ।।

बलि बलि जाऊँ पिया अपने सों हिय मोहे लगाये ।
भाग मेरो जागे सखी बाँवरी पिया पाये ।।

  श्यामा जू बहुत ही मधुर वंशी वादन कर रही है। तभी श्यामसुन्दर उन्हें आते नज़र आते हैँ। श्यामा जू उन्हें छूकर कहती है प्यारे जू तुम आ गए। मैंने तुम्हें ढून्ढ लिया। अरी वंशिके तेरी बात सही हुई री देख श्यामसुन्दर आ गए। खेल समाप्त हो गया श्यामसुन्दर आ गए। श्यामसुन्दर तो घण्टों पहले  छिपने का खेल खेलते हुए अपनी वंशी भूल गए थे जिसे खोजते हुए वो कदम्ब के वृक्ष के पास आये थे। श्यामा जू को तो स्मरण भी न रहा ,किसी भी प्रकार उनकी विरह वेदना तो समाप्त हुई ही है। श्यामसुन्दर भी उन्हें प्रसन्न देख प्रसन्न हुए और श्री श्यामा को आलिंगन में ले लेते हैँ। सभी सखियाँ और वंशी अपने युगल के आनन्द से आनन्दित हैँ।
क्रमशः

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