वंशिका 16
जय जय श्यामाश्याम
वंशिका 16
आज वंशिका श्यामसुन्दर को देख आश्चर्यचकित हो रही है। विरहित हुए कान्हा को कई बार देखा है परन्तु ऐसे बौराय हुए से देख देख आश्चर्य में डूब रही है। श्यामा जू के नाम सुनने को ऐसे व्याकुल हुए बैठे हैँ। कभी बांसुरी को कहते हैं चल मुझे राधा नाम सुना ये तो उनका नित्य का ही कार्य है। आज तो हर सखी को बोल रहे। कभी प्यारी सखी के पास गए। प्यारी जू तो पहले से ही प्रिया जू की लाडली ठहरी। वो समझती है कान्हा उससे कोई विनोद करने आये । प्यारी सखी तो श्री जू की सेवा में चली गयी,अभी कान्हा और व्याकुल हुए जा रहे। बार बार अपनी बांसुरी से कहते हैं मुझे राधा नाम कौन सुनाएगा। अपनी बांसुरी संग संगिनी सखी के पास चले गए। संगिनी तो सदा युगल संगिनी रही है कान्हा की इस व्याकुलता को समझती है। तुरन्त से ही राधा राधा ..... गायन शुरू कर देती है।
बौराय हुए से कान्हा इधर से उधर जा रहे जैसे उनको आज सबके मुख से अपनी प्यारी का ही नाम सुनना है। हो भी क्यों न श्री राधा उनके प्राण जो हैँ। अभी मधु सखी के पास गए । ज्यूँ ही ये सखी राधा नाम गायन आरम्भ करती है कान्हा की दशा तो और बिगड़ने लगती है। इनको तो जैसे संतोष ही न हो रहा। जितना राधा नाम सुनते उतने ही व्याकुल हुए जा रहे हैँ। सखी इनको राधा राधा राधा .....नाम सुना रही है। ये तो उस सखी की चरण रज में लोटने लगते हैँ। उसी चरण रज उठा उठा जैसे उसमें स्नान करने को आतुर हो रहे। राधा नाम सुनने में इतना आनन्द आ रहा इनको। सखी की चाकरी करने को व्याकुल हुए जाते हैँ। सखी इनको देख जहां प्रसन्न हो रही है श्यामसुन्दर का दर्शन कर रही है अपनी स्वामिनी जू का नाम गायन कर रही है वहीं श्यामसुन्दर को ऐसे रज में लोटते हुए पुनः पुनः सखी के चरण छूने को उन्मादित देख खिन्न भी हो रही है। ऐसा परम् दिव्य प्रेम जिसका वर्णन वाणी से भी न हो सकेगा।
संसारी लोग युगल लीला को केवल एक स्त्री पुरष की प्रेम लीला समझते । परन्तु ये अलौकिक प्रेम बुद्धि से कहाँ समझ आएगा। कान्हा जू ऐसे बाँवरे हुए कि जो कोई उन्हें राधा राधा ....नाम सुनाए उसके चाकर भी होने को लालायित हो रहे। संसारी प्रेम तो देह तक सीमित रहता , क्या कोई प्रेमी संसार में ऐसे भी प्रेम कर सकता है। इस दिव्य प्रेम का उन्माद इसका गहन विरह आस्वादन केवल युगल कृपा से ही सम्भव है। बांसुरी आज युगल प्रेम के एक छोटे से कण मात्र को छूकर ही उन्मादित हुई जा रही है। आज श्यामसुन्दर की इच्छा केवल राधा नाम सुनने की है तो यही सेवा है इसकी। सदैव अपनी स्वामिनी जू के मधुर मधुर नाम का गायन।
जय जय राधिके जय जय कृष्णप्यारी !
जय जय श्यामा जय जय सर्वहितकारी !!
जय जय राधिके जय जय नवल तरंगिणी !
जय जय श्यामा जय जय कृष्णसंगिनी !!
जय जय राधिके जय जय परमपुनीता !
जय जय श्यामा जय जय मृदुल विनीता !!
जय जय राधिके जय जय ब्रजेश्वरी !
जय जय श्यामा जय जय विश्वेश्वरी !!
जय जय राधिके जय जय कीर्ति नन्दिनी !
जय जय श्यामा जय जय श्याम आन्दिनी !!
जय जय राधिके जय जय कंचन वर्णी !
जय जय श्यामा जय जय कलिमल हरणी !!
जय जय राधिके जय जय सुकीर्ति !
जय जय श्यामा जय जय परम् प्रकृति !!
जय जय राधिके जय जय त्रिलोक स्वामिनी !
जय जय श्यामा जय जय कृष्ण आराधिनी !!
जय जय राधिके जय जय परमकृपालिनी !
जय जय श्यामा जय जय परम् दयालिनी !!
नित नित करूँ वन्दन कर जोरी ब्रज ठकुरानी !
नित नित मैं गुण तेरे गाऊँ कल्याणी !!
आशा है नित्य ही राधा नाम गायन हमारा जीवन हो जाए। श्री राधा नाम ही हमारा धन हो। इस वंशिका के हृदय की सदैव यही कामना रहेगी।
हे प्राणेश्वरी हे कुँजेश्वरी राधा रासेश्वरी नमो नमः
वृषभानुनन्दिनी राधिके वृन्दावनेश्वरी नमो नमः
अद्भुत रूप तुम्हारा स्वामिनी
शब्दों में वर्णन नहीं आए
तुम्हरी दया से मेरी राधिके
तेरी ही कोई महिमा गाए
हे प्राणेश्वरी हे कुँजेश्वरी राधा रासेश्वरी नमो नमः
वृषभानुनन्दिनी राधिके वृन्दावनेश्वरी नमो नमः
करुणा सागर है लहराता
करुणा की मूर्ति बन जाती हो
पात्र कुपात्र कहाँ तुम देखो
शरण पड़े को अपनाती हो
हे प्राणेश्वरी हे कुंजेश्वरी राधा रासेश्वरी नमो नमः
वृषभानुनन्दिनी राधिके वृन्दावनेश्वरी नमो नमः
रूप अगाधा परम् पुनीता
निर्मल तुम गौरंगिणी राधे
प्रेममूर्ती प्रेमसुधा की सागर
कृष्ण की तुम हो प्राण अराध्ये
हे प्राणेश्वरी हे कुँजेश्वरी राधा रासेश्वरी नमो नमः
वृषभानुनन्दिनी राधिके वृन्दावनेश्वरी नमो नमः
इस निर्धन को नाम का धन दो
नाम तेरा ही जीवन बन जाए
तेरी कृपा हो करुणामयी राधे
जीवन ये मधुबन बन जाए
हे प्राणेश्वरी हे कुँजेश्वरी राधा रासेश्वरी नमो नमः
वृषभानुनन्दिनी राधिके वृन्दावनेश्वरी नमो नमः
क्रमशः
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