वंशिका@13
जय जय श्यामाश्याम
वंशिका 13
श्यामसुन्दर प्रिया जू की प्रतीक्षा में यमुना के तट पर एक वृक्ष की ओट में हैँ। नेत्र पुनः पुनः उस मार्ग को निहार रहे हैँ जहां से उनकी प्राणप्रिया श्री श्यामा आने वाली है। श्यामसुन्दर कुछ देर उस मार्ग को निहारते हैँ और फिर उनके अधरों पर मृदु हास्य उभर आता है। श्यामसुन्दर की वंशिका कबसे उनकी ये स्थिति देख रही है और श्यामसुन्दर से इसका कारण पूछ बैठती है। श्यामसुन्दर भी सदैव अपनी श्री प्रिया की बात सुनाने को लालायित ही रहते हैँ और जब उनकी वंशिका ये पूछे तो क्यों न कहेंगें। वंशिके ! तू मेरे हृदय की बात सुनेगी तो तू भी अति प्रसन्न हो जायेगी। रात्रि में मैंने एक स्वप्न देखा कि मेरी प्रिया बांसुरी बजाना सीखना चाहती है। अच्छा श्यामसुन्दर सच! वंशिका तो ख़ुशी से नृत्य करने लगती है । फिर श्यामसुंदर आगे क्या हुआ ? श्यामसुन्दर और वंशिका की बात बीच में ही रह जाती है, तभी वहां श्री श्यामा आ जाती है।
श्यामसुन्दर ! ये नाम पुकार श्री प्रिया मन्द मन्द मुस्कुराते हुए उनकी और देखती है। हाँ प्रिये कहो तो क्या बात है ,श्यामसुन्दर बोले। श्यामसुन्दर मुझे वंशिका वादन सीखना है। वंशिका ये सुन हैरान हो जाती है श्यामा और श्याम के हृदय सच में परस्पर बंधे हुए हैँ प्रेम से । दोनों एक दूसरे के हृदय के भाव कितनी सूक्ष्मता से हृदयांगम कर लेते है। नहीं प्रिया जू तुम न सीख पाओगी बांसुरी श्यामसुन्दर बोले। क्यों ऐसी क्या बात है जो मुझे बांसुरी बजानी न आएगी ,श्री प्रिया सहज ही कह देती हैँ। अच्छा तो प्रयत्न करलो। इतना कहकर श्यामसुन्दर श्यामा को अपने निकट बुला लेते हैँ। अपनी दोनों भुजाएं प्रियाजू के गले में डाल बांसुरी को उनके अधरों से स्पर्श करते हैँ। आहा ! बांसुरी की क्या अवस्था हो रही है ये तो वही अनुभव कर सकती है। भीतर तक सिहरन कम्पन से भर जाती है। श्री प्रिया दोनों हाथों से बांसुरी को पकड़ लेती है और अधरों से उसके छिद्र में वायु प्रवाहित करने लगती है। तभी श्यामसुन्दर के हाथ प्रिया जू के हाथों को स्पर्श करते हैँ। श्री श्याम प्रेम विव्हल होने लगती है और उनसे बांसुरी न बजाई जाती है। बांसुरी भी तो इस प्रेम रस से जड़ होने लगती है। श्यामसुन्दर हंसने लगते हैं और कहते हैँ देखा न मैंने कहा था न तुमसे न होगा। तभी प्रिया जू अपने हाथों में बांसुरी लेकर एक और खड़ी हो जाती है तथा पुनः प्रयास करने लगती है। श्यामा और श्याम का हृदय सदैव अभिन्न ही है श्यामा जू बांसुरी बजाना केवल श्यामसुन्दर की प्रसन्नता के लिए करना चाहती हैँ इसलिए उनके विनोद करने पर पुनः प्रयत्न करती है। अभी श्यामसुन्दर उन्हें मीठी चितवन से निहारने लगते हैँ। उनके नेत्र श्री प्रिया जू के नेत्रों से जा मिलते हैँ और प्रेम रस छलकने लगता है। श्री प्रिया तुरन्त अपने को सम्भाल बांसुरी बजाने लगती है। अपने प्रियतम श्यामसुन्दर को अपनी चेष्ठा द्वारा और अधिक प्रेमरस प्रदान करती है। श्री प्रिया अपने अधरों से प्रेम रस बांसुरी में भरने लगती है।
श्याम पिया मैं पायो सखी री
श्याम पिया मैं पायो
बहु दिन ते विरह वेदना जरिहौ
अबहुँ पिया घर आयो सखी री
श्याम पिया मैं पायो सखी री
श्याम पिया मैं पायो
बन बन मयूरी पिया संग डोलूँ
अति आनन्द रहे छायो सखी री
श्याम पिया मैं पायो सखी री
श्याम पिया मैं पायो
पिया निरखे मोहे मैं पियु निरखुँ
प्रेम ना उर माँहि समायो सखी री
श्याम पिया मैं पायो सखी री
श्याम पिया मैं पायो
सब सखियन मिल सेज सजाई
श्यामा श्याम धरायो सखी री
श्याम पिया मैं पायो सखी री
श्याम पिया मैं पायो
आहा ! हर और प्रेममयी संगीत गूंजने लगता है। जड़ चेतन सभी श्री प्रिया प्रियतम के प्रेम आनन्द से रसमयी होने लगते हैँ । श्यामसुन्दर मयूर मयूरी के नृत्य को देखने लगते हैँ और उनके साथ नाचने लगते हैँ। श्री श्यामा भी मयूरी बन नाचने को मचलने लगती हैँ। सभी सखियाँ एक एक वाद्य को अपने हाथ में लेकर बजाने लगती हैँ और श्यामा जू के हृदय का गीत गाती हैँ
श्याम पिया मैं पायो ........
इधर युगल मयूर मयूरी बन नृत्य कर रहे हर और प्रेम रस की वृष्टि हो रही है और सभी युगल के इस प्रेम राज्य में युगल का सुख वर्धन करके सुखी हो रहे। आज वंशिका के परम् सौभाग्य का उदय हुआ जो इसने अपने युगल को कुछ क्षण का सुख दिया है।
क्रमशः
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