भूमिका
जय जय श्यामाश्याम
श्री युगल की किसी भी लीला को उनके किसी भाव को कहने या लिखने का सामर्थ्य मुझ जैसे मलिन जीव में नहीं। सदा अनुभूत की उनकी कृपा उनका ही प्रेम शब्द बनकर बहा है । वैसे भी मैं तो एक छोटी सी तितली हूँ न , मेरे छोटे से पंखों में कहाँ इतनी सामर्थ्य है कि अपनी उड़ान को ऊँचा कर सकूँ। केवल हृदय में यही भाव कि अपने श्यामाश्याम के प्रेम उद्यान में घूमती रहूं उनकी लीलाओं को लिखने का बल स्वयं युगल ही दें। कभी शब्द रूप में ही लिख मेरे युगल को आनन्द दे सकूँ। इसी भाव से ये वियोगिनी तितली लिख रही हूँ। जिसमें श्री श्यामसुंदर की ब्रज गमन की लीला चित्रित करने का प्रयास है। विरहणी गोपियों की मनोदशा को अनुभूत करना और प्रेम भाव रूपिणी स्वामिनी श्री प्रिया जु की दशा जो भी ये तितली अनुभूत करे। इन शब्दों से किसी को कोई आनन्द हो तो युगल कृपा ही समझिये शेष मुझ मलिन की त्रुटि अनदेखी कीजियेगा।
जय जय श्यामाश्याम
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