वंशिका @10

जय जय श्यामाश्याम

वंशिका 10

श्री प्रिया पुष्प शैया पर लेती हुई है । उनके दोनों कमलनयन मूंदे हुए हैँ। मुख से कुछ शब्द उच्चारण कर रही है। कान्हा कहाँ है  ?वो अब तक नहीं आये | मुझे भूल गए वो । हाय !!! मैं उनको प्रेम नहीं दे पाई । वो मुझे छोड़ कर चले गए। बहुत व्याकुल हो विलाप करने लगती हैं। सब सखियाँ उनको सम्भालने का बहुत प्रयत्न करती हैँ पर उनकी स्थिति यूँ ही बनी हुई है। पूरी देह कांप रही है अत्यंत व्याकुल। उनकी ये दशा उनकी सखियों को भी व्याकुल कर रही है । वो अपनी स्वामिनी जू को इस प्रकार रोते तड़पते कैसे देख सकती हैं । उनके भी प्राणों पर बन आई है।

     सहसा श्री जू उठ बाहर की और दौड़ पड़ती हैँ। कान्हा कान्हा....... कहती हुई व्याकुल सी कभी किधर कभी किधर दौड़ रही हैँ । जैसे श्यामसुन्दर की बांसुरी सुन व्याकुलता और बढ़ चुकी है ।सब सखियाँ उनके पीछे दौड़ पड़ती हैं । वो उनसे हाथ छुड़ा कर भाग रही । सिर से आँचल गिरता जा रहा है वेणी खुल गयी है आभूषण गिरने लगते हैँ , अपनी दशा का भान ही नहीं है श्री प्रिया को। मुख से केवल एक ही नाम कान्हा कान्हा ......... कहती हुई दौड़ती जा रही है।  लाडली कहीँ अपने आप को सम्भाल नहीं पाई तो। उनको स्वयम् की कोई खबर नहीं हो रही। हाय ! दौड़ती हुई श्री जू गिर जाती हैं। पुनः उठती है और देखती है श्री श्यामसुन्दर यमुना तट पर वृक्ष के नीचे खड़े बांसुरी बजा रहे हैँ। अत्यंत व्याकुल हो उस प्रेम रस की और आकर्षित होती हुई श्री श्यामसुन्दर के वक्ष स्थल से लिपट जाती है। जैसे धीरे धीरे उन्हीं में सिमटने लगती है। कुछ ही क्षण में मूर्छित हो गिर पड़ती है।

     सहसा उनकी आँख खुलती है।  वो तो कान्हा के आलिंगन में हैं। तेज़ तेज़ सांसे चल रही हैं पूरी देह काम्प् रही है स्वेद कण मुख पर फैले हुए और कान्हा कान्हा ..... पुकार लगा रही । वह तो अपनी उसकी पुष्प शैया पर श्यामसुन्दर संग है उन्हीं के आलिंगन में है और श्री श्यामसुन्दर कब से उनकी इस स्थिति को अनुभव कर रहे। कब से उनका श्री मुख निहार रहे हैं। वो स्वप्न में ही ये सब अनुभव कर रही हैं । कान्हा को सन्मुख पा उनको विश्वास नहीं हो रहा की वो स्वप्न में हैं । कान्हा उन्हें प्रेम से आलिंगन करते हैं और श्री जू कान्हा कान्हा कहती हुई उन्हीं में समा जाती हैँ। कैसा दिव्य प्रेम है जो संयोग में भी वियोग की व्याकुलता देता और कभी वियोग में संयोग का अनुभव । उनके इस अद्भुत प्रेम की आज फिर से द्रष्टा हुई है ये वंशिका जो अपने प्रिया लाल के सुख से अत्यंत सुखी है।

क्रमशः

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