तुमसे कैसे छिपाएं अश्क़
तुमसे कैसे छिपाएँ अश्क अपने तुम तो धड़कनों में रहते हो
जो नहीं बयान हो सके मेरे लबों से दिल की वो दास्तान कहते हो
देखो गुस्ताख बहुत हूँ मैं सनम तुमसे कभी इश्क़ हुआ न कभी
तुम रहे चूर सदा इश्क़ में मैंने तेरे दिल को छुआ न कभी
मेरी की हुई गुस्ताखियाँ सारी क्यों तुम हंस हंस कर सहते हो
तुमसे कैसे छिपाएँ अश्क अपने तुम तो धड़कनों में रहते हो
जो नहीं बयान हो सके मेरे लबों से दिल की वो दास्तान कहते हो
वो कोई ओर ही लोग होंगें सुनो जो तुम्हें दिल ओ जान से चाहते हैं
सहते हैँ गम जो दुनिया के सदा और लबो से कुछ न कहते हैं
वो तुम्हारे दिल के करीब हैँ और तुम उनके दिलों में रहते हो
तुमसे कैसे छिपाएँ अश्क अपने तुम तो धड़कनों में रहते हो
जो नहीं बयान हो सके मेरे लबों से दिल की वो दास्तान कहते हो
मैं तुम्हें इश्क़ भी करूँ कैसे क्या है जो तुमको मैं दे पाऊँगी
अश्क़ दर्द और आहें ही पास मेरे बस तेरी ही रज़ा मनाऊँगी
फिर भी बनकर इश्क़ के तूफ़ान मुझपर बारिशों सा बरसते हो
तुमसे कैसे छिपाएँ अश्क अपने तुम तो धड़कनों में रहते हो
जो नहीं बयान हो सके मेरे लबों से दिल की वो दास्तान कहते हो
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