वंशिका@6

जय जय श्यामाश्याम

वंशिका 6

श्यामाश्याम यमुना तट पर एक वृक्ष की छैया में बैठे हैँ। श्यामा जू की दृष्टि यमुना जल में लगे हुए नील वर्ण कमल पुष्पों पर पड़ती है। श्री श्यामा का हृदय उस पुष्प को पाने को लालयित हो उठता है। श्री श्यामसुन्दर अपनी प्रियतमा के हृदय की अभिलाषा पूर्ण करने हेतु अपना पीताम्बर और बांसुरी छोड़ यमुना जल में कूद पड़ते हैं। श्री राधा उनका पीताम्बर और बांसुरी उठा लेती है। श्री श्यामा के हाथों का स्पर्श पाकर तो आज बांसुरी और पीताम्बर के भाग जाग उठे हैँ। नित्य प्रति श्री स्वामिनी का नाम पुकारते हुए चारों और स्वर लहरियाँ तरंगायित करते हुए अति प्रसन्न होती है आज तो उनका स्पर्श पाकर आनन्द विभोर हुई जा रही है।

     श्री राधे बांसुरी को अपने हाथ में उठा लेती है और निहारने लगती है यही सब तो बांसुरी ने श्री श्यामसुन्दर संग अनुभव किया था। हो भी क्यों न श्यामा और श्याम सदैव अभिन्न ही तो हैँ। बांसुरी को हाथ में पकड़ श्री श्यामा बोल पड़ती है वंशिके ! इतना सुनते ही बांसुरी के कानों में जैसे अद्भुत रस घुलने लगता है। ऐसे ही तो श्यामसुन्दर पुकारे थे मुझे। अभी इसकी स्थिति ऐसी हो चली है कि इससे कुछ कहते नहीं बनता परन्तु अपने को तुरन्त सम्भाल श्री श्यामा के हृदय के भाव सुनने लगती है। श्यामा जू ! मुझे ऐसे ही श्यामसुन्दर हाथों में पकड़ कर पूछे थे वंशिके!मेरी श्यामा क्या कर रही होगी । अच्छा सच ,तुमने क्या कहा उनसे ? मैंने कहा श्यामसुन्दर श्यामा जू तो आपके हृदय में रमण कर रही हैँ। अरे वंशिके! तू भी श्यामसुन्दर संग रहकर विनोद करना सीख गयी है श्री प्रिया कुछ लजाते हुए बोली और आँखें झुका ली। क्यों स्वामिनी जू मैंने कुछ असत्य तो न कहा । ये सुन श्यामा के अधरों पर मन्द मन्द मुस्कान खेलने लगती है। इतने में श्यामसुन्दर कमल पुष्प ले लौट आते हैँ और देखते हैँ उनकी प्रिया बांसुरी को हाथों में पकड़ मुस्कुरा रही है। श्यामसुन्दर कहने लगते हैं क्यों श्यामा ये वंशिका तुमसे क्या कह रही थी। श्री प्रिया कहती है ये तुम्हारे संग से तुम जैसा विनोद करना सीख गयी है। तभी श्यामसुन्दर भी प्रिया जू संग मुस्कुराने लगते हैं।

  बांसुरी अपने प्राणधन श्री युगल को आनन्दित देखती है और कोई स्वरलहरी छेड़ना चाहती है जिससे इस प्रेमी युगल के हृदय के तार खनखना उठें और ये प्रेम उन्मत हो एक दूसरे को परस्पर सुख प्रदान करते रहें। बांसुरी गाने लगती है:

आज पिया मोहे अंग लगाय लीयो
हाय सखी मेरो सुधि बिसराय दीयो

पीर बिरह की सखी बड़ो भारी
पिया मिलन ते मैं बलिहारी
पिया मोहे आन हिय सों मिलाय लीयो
आज पिया.......

तेरी छुअन से सिहर गयी मैं पिया
अंग लगायो संवर गयी मैं पिया
प्रेम सों पिया सुहागिन बनाये दीयो
आज पिया........

अंग अंग रस पिया अपनों भर दीयो
ऐसो नेह लगा बाँवरी कर दीयो
मोहे पिया नित सजनी बनाइयो
आज पिया......

मिलन सेज लगी पिया जी आओ
बहुत देर भई ना मोहे तरसाओ
तेरी चाह अपनी चाह बनाय लीयो
आज पिया.....

मन्द मन्द बह रही समीर यमुना पुलिन और बांसुरी के प्रेम स्वर छेड़ने पर युगल के हृदय में प्रेम लहरियाँ उठने लगी और वो प्रेमसागर में डूबते हुए प्रेम सुधा का पान करने लगते हैँ।

क्रमशः

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