नित विषय अग्न
हिय मेरो नित विषय अग्न जलावे
ऐसो अभाग पतित और कामी हरि सों प्रीत न लावे
नाम रस अमूल्य निधि छांड हिय जगत विष्ठा नित खावे
कैसो शान्त होवै भटकन तेरो कबहुँ हरि गुण न गावे
खावत पीवत सोवत ज्यूँ कूकर बिरथा जन्म बितावे
युगल चरण सों नेह न लागे एह जन्म अकारण जावे
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