काश

काश!!!
काश मुझे तुमसे इश्क़ होता
मैं बह जाती उस नदी की धारा में
वो प्रेम नदी
तुम्हीं थे न
हाँ
तुम्हीं थे
कितना पुकारा था तुमने मुझे
सुना था इस हृदय ने
पर सुनकर अनसुना कर दिया
तुम्हारी पुकार से
खलबली सी मची भीतर
पर दबा दी मैंने
हर प्रेम तरँग
क्या कोई नदी भी कभी पुकारती है
नहीं न
पर वह नदी तो न थी
वह तो बहता हुआ प्रेम था तुम्हारा
जो तरँगायित हो रहा था
उछल उछल पुकार रहा था
दे रहा था मुझे
तुम्हारे प्रेम का सन्देस
क्यों न सुन सकी मै
हाय !!!
न सुन सकी
न बह सकी
नहीं हुआ न इश्क़ मुझे
सच में
नहीं हुआ

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