विरह पद
सखी री काहे लगाय बैठी नैना
सावन बरसे देह मोरी भीजे अँसुवन सों भीझत नैना
बिरह पीर मेरो हिय तपावे बरसत रहयो दोऊ नैना
तन मन प्राण मोरे अकुलाए बाँवरे भये हाय नैना
रैन दिवस बात तोरी जोहवें देहरी गड़े रहे मोरे नैना
पिय की सुरतिया कबहुँ निरखुँ सुफल होवें एह नैना
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सखी जाय पिया सों देय मोरी पाती
बिरहन भई रहूँ अकुलाय नैनन न नींद समाती
जो जानती रीत प्रीत की ऐसो काहे प्रीत लगाती
पिय पिय रटत भई बाँवरी बैठी नित नीर बहाती
पाती मिल जावे आ जाइयो बिरहन न धीर धराती
हिय कागद मेरो अँसुवन स्याही पिया लिखूँ तोहे पाती
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मेरो हिय न पावे कित ठौर
खान पान कछु न सुहावे भीझत रहे नैन कोर
पिय पिय टेरत रहे बाँवरी साँझ भये या भोर
हिय की पीर मिटे सखी री निरखत नन्दकिशोर
पिय बिन भावे न मोहे सावन बिरह पीर अति घोर
तड़पत रहूँ दिन रैन मोहना बाँध तोसे हिय डोर
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कोकिला मीठी कूक सुनावे
बिरहन बाँवरी पिय बिन तरसे काहे जिया जलावे
मयूरा मदमस्त हो नाचे बदरा घुमड़ जब आवे
नैया सावन मेरो बरसे किस विध धीर धरावे
भीतर अग्न बिरह की भारी नैनन जल बरसावे
प्रीत की रीत अनोखी सखी री सोई जाने जो लावे
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पिय मोरे नयन नित बरसत
कबहुँ निरखुँ मुखचन्द्र सलोना नयन रहयो तरसत
सावन की ऋतु सुनी पड़ी हाय खाली झूले झूलत
बिरहन पुनि पुनि धावत देहरी व्याकुल भई राह निरखत
कौन घड़ी पिया मेरो घर आवे सूरत हिंडोरे झूलत
बीत न जावे सावन सुनो पिय बिन क्षण हिय न लागत
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