इश्क़ के समंदर में
इश्क़ के समंदर में इतने तूफान क्यों हैं
मुझमें जिन्दा मेरी मौत का सामान क्यों है
हमने तो चाहा था बस तेरा इश्क़ ही प्यारे
इन गलियों का सब रस्ता वीरान क्यों है
इश्क़ के समंदर में....
जान ही ले लो अब कोई आरज़ू न जिंदा रही
तड़पती इस रूह का ये जिस्म मकान क्यों है
इश्क़ के समंदर में....
माना कि मुझसे न हुई कोई खुशी मुकम्मल तेरी
पगला से दिल मेरा बता ऐसा नादान क्यों है
इश्क़ के समंदर में....
आती जाती लहरों में अब तैरना नहीं है मुझे
डूबने के शौक था तैरना आसान क्यों है
इश्क़ के समंदर में ....
अब न कहेंगें किसी से कुछ कभी भी सिवा तेरे
दर्द ही पीना है मुझे खुशी का अरमान क्यों है
इश्क़ के समंदर में .....
मैंने सदा दर्द ही दिया तुझको तेरे चाहने वालों को
रूह तक है दर्द में बाहर कोई निशान क्यों है
इश्क़ के समंदर में.....
अब मुझे दर्द ही दर्द देना और कोई आरज़ू नहीं
मौत दे दे मुझमें जिंदा ये शैतान क्यों है
इश्क़ के समंदर में इतने तूफान क्यों हैं
मुझमें जिंदा मेरी मौत का सामान क्यों है
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