चाहयो जो नित मान बढ़ाई
चाहयो जो नित मान बढ़ाई हरि सों नेह न लागे
भजन बिन जन्म व्यर्थ गमायो हिय प्रेम रँग न पागे
पुनि पुनि रहयो चुरासी फेरत मो सम कीट अभागे
कान दियो न कबहुँ सद्गुरु की बातां हिय प्रेम न जागे
धिक धिक होय ऐसो जीवन नेह युगल चरण न लायो
मुख रख लीन्हीं जिव्हा चाण्डालिनी हरि गुण न गायो
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