झूठ है इश्क़ मेरा

झूठा है इश्क़ मेरा झूठी मेरी मोहबत
इलज़ाम दिया उनको वो करते नहीं इनायत

जो मुझको मोहबत होती उनसे कभी उनके दिल की सुनती
कभी उनकी रज़ा ना देखी अपने ही दर्द गयी बुनती
कौन कहता है ये इश्क़ है इश्क़ तो होता है इबादत
झूठा है इश्क़ मेरा ........

कभी अपने गम से उठकर तेरे दिल की बात होती
तेरे भी कोई अरमान हैँ मैं रही अपने लिए ही रोती
नहीं मुझको इश्क़ आया ऐसी करती हूँ मैं हरकत
झूठा है इश्क़ मेरा ........

कभी दिल मेरा चाहता रहे कोई वजूद ना मेरा
ये भी कोई इश्क़ है नहीं नाम जुबां पर तेरा
पत्थर सा दिल है मेरा कैसे रहेगी उल्फ़त
झूठा है इश्क़ मेरा........

नहीं तड़प उठती दिल में तेरे बिन क्यों जी रही हूँ
हर साँस इक ज़हर सा हाय क्यों मैं पी रही हूँ
नहीं उठती दिल में मेरे तेरे लिए कोई हसरत
झूठा है इश्क़ मेरा झूठी मेरी मोहबत
इलज़ाम दिया उनको वो करते नहीं इनायत

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून