तेरे इश्क़ में

आज तेरे इश्क़ में यूँ हम खिल गए
गमों की चाशनी बना शर्बत में मिल गए
रहते हैं कहाँ जुदा जिनको है इश्क़ हुआ
एक ही बाक़ी रहा कभी जहाँ दो दिल गए

अब क्या करोगे पर्दा मुझमें ही उतर गए
खिलती हुई सी चाँदनी बनकर बिखर गए
न कोई दर्द न कोई पुकार कैसा ये मोड़ है
दोपहर में लगता था सब ज़ख्म छिल गए
आज तेरे इश्क़ में....

दिल की गहराइयों में अब उठने लगे तराने
जाने ये क्या हालत है मेरा ख़ुदा ही जाने
कभी बहते थे अश्क़ कभी होंठों पर हंसी है
खुद को भुलाकर जाने कैसे तुझमें मिल गए
आज तेरे इश्क़ में .....

नग्में भी सब हैं तेरे हर लफ्ज़ तू ही तू है
तू ही बन गया है धड़कन तू हर आरज़ू है
अब और कोई हसरत दिल मे रही न बाकी
बहते हुए ज़ख्म इस रूह के सब सिल गए
आज तेरे इश्क़ में......

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